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३७.पत्र :जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग ]

सितम्बर ३०, १९०८

जेल-निर्देशक
प्रिटोरिया
महोदय,

श्री वासन रणछोड़ने मुझे सूचित किया है कि वे अभी-अभी जर्मिस्टिन जेलसे छूटे हैं । वहाँ उन्होंने ३ दिनको सख्त कैदको सजा काटी । वे मेरे संघको सूचित करते हैं कि उस अवधि में उन्हें जो भोजन दिया गया, उसमें नाश्तेके समय मकईका दलिया, दोपहरके भोजन में चर्बी में पकाई हुई या चर्बी मिलाई हुई मकई, और शामके भोजन में मकईका दलिया होता था । इस भोजनका कोई विकल्प नहीं था ।

यदि ये आरोप सही पाये जायें तो मेरे संघको आपसे तत्काल यह आश्वासन पाकर हर्ष होगा कि जहाँ-कहीं चर्बीका उपयोग किया जाता है वहाँ उसकी जगह घी का उपयोग किया जायेगा । मुझे आपको यह स्मरण दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि कट्टर मुसलमान या हिन्दूके लिए चर्बी के साथ पकाया हुआ भोजन धार्मिक दृष्टिसे अपवित्र है । मुसलमान किसी ऐसे पशुकी चर्बी खा सकता है जो विधिपूर्वक हलाल किया गया हो, और हिन्दू तो, हो सकता है चर्बी बिल्कुल खाये ही नहीं ।

आपका आज्ञाकारी सेवक,

अ० मु० काछलिया

अध्यक्ष,

ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन,१०-१०-१९०८

१. जेल- निदेशक (डायरेक्टर ऑफ प्रिज़न्स) को लिखा यह पत्र १०-१०-१९०८ के इंडियन ओपिनियन में इस शीर्षक से छपा था -- "क्या भारतीय भूखों मारकर झुकाये जायेंगे ? और पत्र-व्यवहार " ।