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भेंट : 'नेटाल मर्क्युरी'को

उन्हें उपनिवेश में प्रवेश करने की अनुमति होगी; किन्तु वे सरकारको शिनाख्त के सम्बन्ध में तबतक कोई सहायता न देंगे जबतक दो मुख्य प्रश्न तय नहीं हो जाते ।

भेंटकर्ताने प्रश्न किया : "ब्रिटिश भारतीयोंके कानून-पालक स्वभावसे इस रुखकी-संगति कैसे बैठती है ? " श्री गांधीने उत्तर दिया कि मेरे मतसे भारतीयोंके रुखमें कोई भी विद्रोह नहीं है । याद यह रखना चाहिए कि ट्रान्सवालको संसदमें ब्रिटिश भारतीयोंका कोई प्रतिनिधित्व नहीं है । और अपनी आवाज सुनानेका उनके पास एकमात्र कारगर तरीका उन कानूनों को मानने से इनकार करना है जिनके पास करनेमें उनका कोई हाथ नहीं है और जो उनकी अन्तरात्मा अथवा आत्म-सम्मानपर चोट करता है । उन्होंने कहा, भारतीयों की मान्यता यह है कि जनरल स्मट्स एशियाई कानूनको रद करने के लिए वचनबद्ध हैं, किन्तु वे कहते हैं कि वे उसे "प्रभावहीन कानून" मानकर चलेंगे । भारतीय कहते हैं कि यह काफी नहीं है और मैं देखता हूँ कि अब भी पुराना कानून किसी भी प्रकार " प्रभावहीन" नहीं है । इन स्थितियोंमें भारतीयोंने जनरल स्मट्ससे माँग की है कि कानूनको रद करके अपने वचनका पालन करें और जबतक यह नहीं हो जाता तबतक उन्हें [ भारतीयोंको ] नये कानूनसे प्राप्त लाभों को स्वीकार न करनेकी सलाह दी गई है। श्री गांधी विचारमें यह भारतीय समाजका एक त्याग है, जिसकी सराहना समस्त दक्षिण आफ्रिकाके उपनिवेशियोंको करनी चाहिए ।

इसके बाद प्रश्न यह किया गया : “ परन्तु शिक्षा-सम्बन्धी प्रश्नके विषयमें आप क्या कहते हैं ? " श्री गांधीने कहा कि इसका उत्तर बहुत सीधा-सादा है । यदि कानून रद कर दिया जाता है तो ट्रान्सवालका प्रवासी कानून लगभग वही होगा जो नेटालका है । ब्रिटिश भारतीय कहते हैं कि साम्राज्य-सरकार और वे लोग, जो साम्राज्यसे प्रेम करते हैं, ट्रान्सवालको केवल जाति और रंगके आधारपर पृथक्करणकी नई नीति स्थापित करने की अनुमति न वें । ट्रान्सवालका वर्तमान प्रवासी कानून, पुराने एशियाई कानूनकी सहायतासे, ऐसा ही विधान प्रस्तुत करता है । इसलिए भारतीयोंका विचार है कि ऐसी बात न होनी चाहिए ।

उन्होंने कहा, ट्रान्सवाल के लोग नेटालके अर्ध-शिक्षित युवकोंके आक्रमणके खयालसे डर गये हैं; किन्तु इसका कारण केवल अज्ञान है । भारतीय अपने अर्ध-शिक्षित देशबन्धुओंके अधिकारोंके लिए नहीं लड़ रहे हैं । वे भारतकी प्रतिष्ठाके लिए और एक सिद्धान्तके लिए लड़ रहे हैं -- उसी सिद्धान्तके लिए जिसकी स्थापना श्री चैम्बरलेनने उपनिवेशीय प्रधान मन्त्री-सम्मेलनमें की थी और वह यह था कि प्रतिबन्ध किसी उचित आधारपर लगाया जाना चाहिए, रंग या प्रजातिके आधारपर नहीं ।' श्री गांधीने कहा कि एक बार कानूनकी निगाहमें शिक्षित भारतीयोंका दर्जा समानताके आधारपर स्थापित हो जाये तो स्वयं मेरा शैक्षणिक कसौटीकी कठोरताके सम्बन्ध में कोई झगड़ा नहीं रह जाता । मुझे मुख्य अन्तर यह प्रतीत होता है : ट्रान्सवालके लोग, बल्कि सारे दक्षिण आफ्रिकाके लोग, ब्रिटिश भारतीयों को बुराईके रूपमें सहन करते हैं । इसके विपरीत भारतीयोंका दावा यह है कि जो लोग दक्षिण आफ्रिकाके अधिवासी हो गये हैं वे उस भावी जातिके अंग बन जायें जिसका निर्माण हो रहा है और उनको शिष्टता और संस्कृतिके

१. देखिए खण्ड २, १४ ३९६-९८ ।