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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मार्गपर आगे बढ़ने में हर प्रकारसे प्रोत्साहित भी किया जाये । जब में यह बात कहता हूँ तो मैं केवल कुछ दिन पहले के श्री पैट्रिक डंकनके इस कथनको ही दुहराता हूँ कि स्वतन्त्र और स्वशासित दक्षिण आफ्रिकामें किसी ऐसे जनसमुदायको कल्पना करना असम्भव न होगा जो दासताको अवस्थामें रहता हो या जिसकी स्थिति निम्न और कानूनको वृष्टिसे हीन हो ।

श्री गांधीने विश्वासपूर्वक कहा कि ऐसे किसी अपमानके विरुद्ध यह कदम उठाने में मेरे देशवासियों को उन सबकी सहानुभूति और सहायता मिलनी चाहिए, जो दक्षिण आफ्रिकासे अपनी मातृभूमि के रूपमें प्रेम करते हैं और जो उसका हित चाहते हैं । मैं यह एक बात बिलकुल स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भारतीय अब दक्षिण आफ्रिकाके किसी भी भागमें एशियाइयोंका अबाध प्रवास नहीं चाहते, और उनकी इच्छा यह भी नहीं है कि बिना समझे-बूझे आम तौरसे व्यापारिक परवाने (ट्रेड लाइसेंस) दिये जाने के सम्बन्धमें कोई विनियम (रेगुलेशन) ही न हों । किन्तु इन दो मान्यताओंकी स्थापनाके बाद कोई भेदभावकारी कानून न बनाया जाना चाहिए, अन्यथा मैं केवल उसी बातको फिर कहूँगा जिसे इतनी बार कह चुका हूँ--यानी दक्षिण आफ्रिकामें साम्राज्य-विघटनके बीज बो जायेंगे । यह नहीं हो सकता कि वे भारतको ब्रिटिश ताजके उज्ज्वलतम रत्नके रूपमें भी रखें और उस रत्नको हर तरफसे प्रहारका लक्ष्य भी बनायें ।

इसके बाद श्री गांधीने इस प्रश्नका, कि सामान्यतः भारतीयोंपर संघीकरणका क्या प्रभाव होगा, निम्न उत्तर दिया : यह वही प्रश्न है जिसका उत्तर में जोहानिसबर्ग में बनाई घनिष्ठतर ऐक्य संघकी बैठक में दे चुका हूँ । मैंने वहाँ कहा था कि संघीकृत दक्षिण आफ्रिकाका अर्थ जबतक केवल गोरी जातियोंका ही नहीं, बल्कि उन सब रंगदार और श्वेत ब्रिटिश प्रजाजनोंका एकीकरण नहीं होता, जिन्होंने दक्षिण आफ्रिकाको अपना देश बना लिया है, तबतक ब्रिटिश भारतीयोंके लिए संघीकृत दक्षिण आफ्रिकाका अर्थ उनकी स्वतन्त्रतापर और भी अधिक प्रतिबन्ध लगाना होगा । ऐसे संघीकरणमें सभी यह अपेक्षा करते हैं कि भारतीयोंसे सम्बन्धित कानून के निर्माणमें उदार सिद्धान्तोंको सम्मुख रखा जाये, किन्तु वहाँ तो प्रायः केपमें भारतीयोंको मताधिकार से वंचित करनेकी और नेटालमें उनपर और अधिक निर्योग्यताएँ लगाने की चर्चा सुनाई देती है । जहाँतक एशियाई कानूनका सम्बन्ध है, ऑरेंज रिवर कालोनी संघीकरणके लक्ष्यके अधिकसे-अधिक समीप पहुँची मालूम होता है । उस उपनिवेशमें एशियाई केवल घरेलू नौकरके रूपमें हैं। वहाँ उनका अन्य कोई आधार बिलकुल नहीं है । प्रत्येक व्यक्तिको यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जिन भारतीयोंके निहित स्वार्थ हैं, जिनको अपने बाल-बच्चे पढ़ाने हैं और परिवारोंका भरण-पोषण करना है, वे ऐसी स्थितिसे, जैसी मैंने बताई है, कभी सन्तुष्ट न होंगे और उसको वे तबतक स्वीकार न करेंगे जबतक एक जोरदार लड़ाई न लड़ लेंगे। मेरे खयालमें नहीं आता कि साम्राज्य-सरकार ऐसी संघीकरण योजनाको कैसे पसन्द कर सकती है, जिसका अर्थ एशियाइयों और वतनियोंको लगभग दासताको स्थितिमें पहुँचा देना होगा ।

१. क्लोजर यूनियन सोसाइटी ।

२. देखिए खण्ड ८, “भाषण : घनिष्ठतर ऐक्य संघमें", पृष्ठ ४५९-६२ ।