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४५. सच्ची शिक्षा

लोग हमें कितनी ही बार कह और लिख चुके हैं कि ट्रान्सवालमें सत्याग्रहका जो संघर्ष चल रहा है, जिसे हम प्रोत्साहन दे रहे हैं तथा जिसके लिए हम अपनी कुर्बानियां कर रहे हैं, उसकी सारीकी सारी मेहनत बेकार है । हमारे ये सलाहकार हमसे यह भी कहते हैं कि दक्षिण आफ्रिका मुट्ठी भर भारतीय निवास करते हैं, उनके लिए ऐसा प्रयास करना ठीक नहीं लगता । और फिर किसी-न-किसी दिन भारतीयोंको यह देश छोड़ना ही पड़ेगा । इसलिए यह सब चुनाई बालूके पायेपर की गई चुनाई-जैसी मानी जायेगी ।

ऐसे विचारोंसे हमारे अनेक पाठकोंके मनमें शंका उत्पन्न हो गई है । अतः इसके बारेमें थोड़ा विचार करें ।

ऊपरका तर्क नितान्त भ्रामक है, ऐसा हम निःसंकोच कह सकते हैं। इस प्रकारकी दलील पेश करनेवाले सत्याग्रहके गम्भीर अर्थ और उसकी खूबीको नहीं समझते। यह विचार कि अन्ततोगत्वा दक्षिण आफ्रिकासे भारतीयोंको निकलना ही पड़ेगा, कोरी निराशाका है । ऐसा होने की हमें कोई सम्भावना दिखाई नहीं देती । भारतीय समाजमें थोड़ा बहुत भी सत्याग्रह हो तो यह माननेका कोई कारण नहीं है कि हमें यह देश छोड़ना ही पड़ेगा ।

यदि देश छोड़ना पड़े, तो भी सत्याग्रहका लाभ तो मिल हो चुका होगा । सत्याग्रह इसलिए नहीं किया जाता कि उससे अधिकार मिलते हैं । हकका प्राप्त होना तो परिणाम है; सत्याग्रह परिणामपर दृष्टि रखे बिना किया जा सकता है । अन्य प्रयासोंके अन्त में वांछित फल न मिले, तो प्रयास व्यर्थ माना जाता है । उदाहरणार्थ, कोई व्यक्ति किसीको मारकर उसकी जायदाद छीन लेने का इरादा करता है और फिर उसे मार नहीं पाता अथवा जायदाद प्राप्त नहीं कर पाता, तो हाथ मलकर रह जाता है और सम्भवतः उसे अपने जीवनसे हाथ धोना पड़ता है। सत्याग्रह में, फल प्राप्त होता है या नहीं, इसकी परवाह नहीं की जाती, क्योंकि फल न मिलनेपर भी इसमें हाथ मलने की बात नहीं रहती । भले ही ट्रान्सवालके संघर्ष के अन्तमें खूनी कानून कायम रह जाता; किन्तु जो सत्याग्रही हैं वे तो विजयी ही रहते। उनके प्रयास से समाजका नुकसान नहीं होता । यही बात दूसरे शब्दोंमें रखें तो कहा जा सकता है कि सत्याग्रह सच्ची शिक्षा है । हम शिक्षा अमुक उद्देश्यसे --- मान लीजिए कि जीविका कमानेके उद्देश्यसे -- लेते हैं, फिर भी सम्भव है, जीविका न मिले। शिक्षा तब भी व्यर्थ नहीं जाती । इसी प्रकार सत्यका पालन किया हो, उसके लिए दुःख उठाया हो, और इससे हमारा मनोबल बढ़ा हो, तो यह अमूल्य शिक्षा -- लाभ --कभी व्यर्थ नहीं जाती । जो सत्याग्रही हुए और रहे हैं, वे संसारके किसी भी भाग में जाकर अपने सत्याग्रहका लाभ उठा सकते हैं ।

इसके सिवाय यदि सत्याग्रहके नतीजेकी जाँच करें, तो वह हमेशा एक ही होता है- यानी अच्छा। जब उसका कोई परिणाम न निकले तो समझना चाहिए कि वैसा सत्याग्रहकी कमजोरीके कारण नहीं, बल्कि हम सत्याग्रह में चुस्त नहीं रहते, इसलिए हुआ है ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ३-१०-१९०८