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४६. हमारा काम

जो लोग इस समाचारपत्रके प्रकाशनमें लगे हुए हैं, वे गोरे हों चाहे भारतीय, उनका उद्देश्य मनुष्यमात्रकी सेवा करना है। भारतीय समाजकी सेवा करना गोरों और फीनिक्स में रहनेवाले भारतीयों, दोनोंका पहला काम हो गया है। उसका कारण स्पष्ट है । भारतीयोंके लिए तो भारतीयकी सेवा उचित ही है, यदि वे उसे न करें और मनुष्य- मात्रकी सेवाका ढोंग करें तो वह ढोंग ही होगा, सेवा नहीं होगी । उसे सेवा नहीं कहा जा सकेगा। जो गोरे हमारे साथ हो गये हैं, वे पहले अपना धन्धा करते थे। उनके सामने गोरे समाजकी सेवा करनेकी कोई बात नहीं थी । उनका इरादा स्वार्थमय जीवन छोड़कर परमार्थमय जीवन व्यतीत करनेका था; इसलिए उन्होंने इस समाचारपत्र में सहयोग देना निश्चित किया । हमारी ऐसी ही धारणा है ।

किन्तु हमारा काम केवल अखबार निकालकर बैठ रहनेका नहीं है । जो लोग फीनिक्स में विचारपूर्वक रह रहे हैं उनका हेतु अपनेको शिक्षित करना तथा उस शिक्षाका लाभ भार- तीय जनताको देना है। इस कारण समाचारपत्रका काम करनेवालोंमें जो लोग पढ़ानेका काम कर सकते हैं, वे अपना अमुक समय उन बच्चोंकी शिक्षामें लगाते हैं जिनका लालन-पालन फीनिक्स में हो रहा है। इस प्रकारका प्रबन्ध कुछ महीनोंसे चल रहा है । यह शिक्षा देनेके लिए उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता, वे वेतनकी आशा भी नहीं रखते ।

फीनिक्स में फिलहाल इतने थोड़े बच्चे हैं कि उनके लिए मदरसेकी निजी इमारत बनाना आवश्यक नहीं है। श्री कोडिज़ने[१]इस कामके लिए अपना मकान दे रखा है ।

शिक्षा, गुजराती तथा अंग्रेजी, दोनों माध्यमोंसे दी जाती है । और शारीरिक विकासकी ओर ध्यान दिया जाता है। बच्चोंमें नीतिको भावनाका पोषण हो, इस बातपर विशेष ध्यान दिया जाता है ।

हमारा उद्देश्य यह है कि ऐसी शिक्षा सभी भारतीय बालकों को दी जा सके। अभी विशेषतः उन्हींको शिक्षा देनेका विचार है जो फीनिक्समें रहते हैं; क्योंकि बच्चोंका व्यवहार पाठशाला में एक प्रकारका और घरमें दूसरी प्रकारका रहे, तो उससे उनका हित-साधन नहीं होता ।

इस पाठशालाकी बात जिन लोगोंने सुनी है, उनमें से कुछ लोग अपने बच्चोंको फीनिक्स में रखनेकी माँग कर रहे हैं । किन्तु हमारे पास छात्रावास अथवा पाठशालाकी इमारतकी सुविधा न होनेके कारण हम उनकी माँगको स्वीकार नहीं कर पाये हैं ।

ऐसे मकान बनानेकी सुविधा हमें दिखाई नहीं देती । उन इमारतोंको बनानेके लिए पैसेकी जरूरत है। इसलिए हमारे पाठकोंमें से जो उक्त पद्धतिके अनुसार पाठशालाकी स्थापनाकी आवश्यकता मानते हों, उन्हें चाहिए कि वे हमें अपने विचार लिख भेजें और यदि

  1. एक जर्मन थियसॉफिस्ट, जो गांधीजीके प्रति प्रेम-भाव रखते थे और कुछ समय तक फीनिक्स स्कूल के व्यवस्थापक रहे थे । उनकी मृत्यु सन् १९६० में सेवाग्राम में हुई ।