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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

हमें उनसे पैसेकी मदद मिले तो हम पाठशाला और छात्रावास बनाने के लिए तैयार हैं । उसमें होनेवाले खर्चके लिए न्यासी (ट्रस्टी) नियुक्त किये जा सकते हैं, और इमारतके खर्चका सारा हिसाब प्रकाशित किया जा सकता है। यह काम बड़ा है, इसलिए हम बहुत सोच- विचारके बाद अपने पाठक वर्गके सामने इसे रख रहे हैं।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ३-१०-१९०८

४७. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[१]

रुस्तमजीका सन्देश

कैदियोंकी तरफ से श्री रुस्तमजीने कहलाया है : " समझौते के विषयमें उतावली न कीजिएगा। सबको सही ले लीजिएगा ।" ये उन्हींके शब्द हैं । इनसे जेलवासियोंकी हिम्मत प्रकट होती है और यह भी जाहिर होता है कि भारतीयोंका अपना कर्तव्य क्या है ।

चेतावनी

ज्ञात हुआ है कि ' गवर्नर' नामक जहाज भारतीय मुसाफिरोंको लेकर डर्बन आनेवाला है, तथा श्री चैमने उन मुसाफिरोंसे जहाजपर ही अर्जी लेंगे। इसपर डेलागोआ बेके मुसाफिरोंको चेतावनी देनेके लिए श्री इस्माइल मंगा, श्री इस्माइल हलीमभाई, श्री होरमसजी एदलजी, श्री नानजी दुलभदास तथा श्री वृजदास लालचन्दके नाम फौरन तार दिये गये कि वे मुसाफिरोंको सावधान कर दें कि वे सरकारी जालमें न फँसें, वे डर्बन उतरें और वहाँसे संघर्ष करनेके लिए ट्रान्सवाल जायें । हिसाब में एक दिनका फर्क पड़ गया, इसलिए किसी व्यक्तिको विशेष रूपसे भेजना सम्भव नहीं हुआ। श्री कामा तथा श्री नगदी जानेके लिए तैयार हो चुके थे ।

जेलियोंकी खुराक

ब्रिटिश भारतीय संघ और सरकारके बीच कैदियोंकी खुराकके सम्बन्ध में झड़प होती रहती है । एकके बदले दो तकलीफें आ पड़ी हैं। सुबह पूपू दिया जाता है । तत्सम्बन्धी लड़ाई श्री काछलिया लड़ रहे हैं। अब जेलके अधिकारी कहते हैं कि भिन्न-भिन्न जेलोंमें भोजनकी व्यवस्था अलग-अलग है। इस विषयपर सरकारसे विभिन्न नियमावलियोंकी नकलें माँगी गई हैं।

'डेली मेल' में टीका-टिप्पणी

उक्त विषयपर गत शनिवारके 'डेली मेल' ने टिप्पणी दी है कि कारावास में भारतीयोंको दी जानेवाली खुराक के बारेमें सारे उपनिवेश में कोई एक निश्चित पद्धति नहीं है। यह बहुत आश्चर्यजनक बात है । एक जेलमें भारतीयोंको उनकी अपनी खुराक दी जाती है और दूसरे स्थानपर उन्हें मक्कीका आटा और चर्बी दी जाती है और यदि वे इसे न लें, तो उन्हें भूखा

  1. गांधीजी इस समय डर्बनमें थे, इसलिए अनुमानतः मूल पत्रमें वर्णित वे घटनाएँ जो डर्बनके बाहर घटित हुई थीं, उनकी लिखी नहीं मानी जा सकतीं । अनुवादमें चिट्ठीके उन अंशोंको छोड़ दिया गया है ।