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सम्पूर्ण गांधी वाड्मय

बात जो भी हो, साधारण हिन्दू धर्मका रूप रामायणमें हूबहू देखा जा सकता है । मूल 'रामायण' संस्कृतमें है । उसे थोड़े ही लोग पढ़ते हैं । उसका अनुवाद दुनियाकी बहुत-सी भाषाओंमें हुआ है । यह रचना भारतकी सभी प्राकृत भाषाओं में भी उपलब्ध है । इन सभी अनुवादोंको परखें तो तुलसीदासजीकृत हिन्दी 'रामायण' के सामने कोई अनुवाद टिकने योग्य नहीं है । सच पूछा जाये तो तुलसीदासजीकी भक्ति ऐसी अनन्य थी कि उन्होंने अनुवाद करनेके बदले उसमें अपने ही भावोंको गाया है; मद्रासके अलावा भारतका ऐसा एक भी हिस्सा नहीं है, जहाँ तुलसीदासजी की 'रामायण' से कोई हिन्दू सर्वथा अनजान निकले। ऐसी 'रामायण भी विदेशों में और स्वदेशमें भी सभी लोग पूरी नहीं पढ़ते । पढ़नेका अवकाश नहीं मिलता । ऐसी पुस्तकें संक्षिप्त रूपमें प्रकाशित की जायें तो भारतीयोंके लिए बड़ी कल्याणकारी हों । इसी उद्देश्य से हमने पुस्तकको संक्षेपमें प्रकाशित करनेका इरादा किया। उसका पहला काण्ड हम तुरन्त ही जनता की सेवामें पेश कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि यह संस्करण मूल 'रामायण' के बदले में काम आये । हम चाहते हैं कि सार पढ़ लेनेपर, जिन्हें अवकाश हो और जो भक्ति रस में भीने हो गये हों, वे मूल भी पढ़ें। इस सारांश में कथाका मुख्य भाग तोड़ा नहीं गया है। लेकिन क्षेपक, लम्बे वर्णन और पेटेकी कुछ बातें छोड़ दी गई हैं ।

हम चाहते हैं कि जो सारांश जनताकी सेवामें पेश किया जा रहा है, उसे हर भारतीय पढ़े, उसका मनन करे और जिस नैतिकताका चित्रण इसमें सजीवतासे किया गया है, उसे ग्रहण करे। यदि रातको तथा अवकाश की दूसरी घड़ियोंमें भारतीय घर-घरमें 'रामायण' का पाठ करें तो हम अपना प्रयत्न सफल मानेंगे ।

दूसरे काण्ड जैसे-जैसे छपते जायेंगे, वैसे-वैसे हम प्रकाशित करते जायेंगे । अन्तमें उन सभीको एक साथ बँधवाया जा सकता है। मूल्य सोच-विचार कर जहाँतक हो सका है, कम रखा गया है, ताकि पुस्तक सभी भारतीय खरीद सकें ।

हिन्दी लिपि और भाषा जानना हर भारतीयका फर्ज है। उस भाषाका स्वरूप जानने के लिए 'रामायण' जैसी दूसरी पुस्तक शायद ही मिलेगी ।

मूल्य : १ शिलिंग । डाकखर्च : १ पेनी ।
इंटरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस, फीनिक्स, नेटाल
[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १७-१०-१९०८