पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/१३५

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५७. संघर्ष

[ अक्तूबर १४, १९०८ के पूर्व ]

जान पड़ता है, संघर्ष अब किनारे लगता जा रहा है, क्योंकि सरकारने अधिक जुल्म ढाना शुरू कर दिया है। श्री सोराबजी तथा श्री आजमका बाहर निकाला जाना, उनका तुरन्त वापस आना, उनको तुरन्त ही सजा होना, बारबर्टनके ५८ भारतीयोंका जेल भेजा जाना, उन्हें देश निकाला देना • इस सबसे मालूम होता है कि सरकारको जो जोर आजमाना है, उसका अन्त आता जा रहा है। उसका खजाना खुटनेपर आ गया है । वह अपना सारा गोला-बारूद खर्च किये डाल रही है । परन्तु यह याद रखना चाहिए कि अन्तका समय बड़ा कठिन होता है। सब कष्ट झेले जा सकते हैं, परन्तु अन्तके कष्ट [ धैर्यपूर्वक ] झेलनेवाले बिरले ही होते हैं । इसलिए हम आशा करते हैं कि भारतीय अन्तके कष्टोंसे नहीं डरेंगे ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १७-१०-१९०८

५८. कुछ भारतीयों को

[ अक्तूबर १४, १९०८ के पूर्व ]

ट्रान्सवाल, नेटाल तथा दक्षिण आफ्रिकाके कुछ अन्य भागोंमें भी कुछ भारतीयोंको शराबकी गहरी लत लग गई है। यह धर्म-विरुद्ध तो है ही, शरीर और मनको भी कमजोर करती है । जिन्हें यह कुटेव लग गई है उनके लिए सत्याग्रह संघर्ष में भाग लेना मुश्किल है। हमारा उद्देश्य शराब से होनेवाली हानिके विषय में लिखना नहीं है । वह तो बहुत लिखा जा चुका है । हम इतना ही कहना चाहते हैं कि जिन्हें यह कुठेव हो, उन्हें कोशिश करके इसे छोड़ देना चाहिए। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो यह व्यर्थ कष्ट देगी और अनेक बार चाहकर भी वे अच्छे कामोंमें हाथ नहीं बँटा सकेंगे ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-१०-१९०८