पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/१४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



१११
भाषण : हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी स्वागत सभामें

सत्यकी राह चलना कौमको पसन्द न भी हो, लेकिन खुदाको पसन्द है । इसलिए, कीम विरुद्ध हो, तो भी मैं वही करूँगा जो खुदाको पसन्द है । आजका उत्साह ठीक था। उससे जाहिर होता है कि हमने सत्याग्रहकी जो लड़ाई शुरू की है, उसमें आप सब और जो यहाँ नहीं आ पाय हैं वे भी शामिल हैं। मैं तो स्टैंडर्टन, हाइडेलबर्ग आदि जगहों में कहता आया हूँ कि सर्वोच्च न्यायालय में हार हो या जीत, उसपर हमारी लड़ाई निर्भर नहीं करती। हमें तो सत्य के लिए स्त्री- बच्चे, माल-मिल्कियत - सबका त्याग करना पड़े, तो हम वह भी करेंगे । चाहे जो भी तकलीफ आये, हम भोगेंगे, और सत्यकी आवाज खुदाके दरबार तक पहुँचायेंगे । उस आवाजकी गूंज जब जनरल स्मट्सके कानोंमें पहुँचेगी, तो उनके दिलमें ख़ुदा उतरेगा और कहेगा कि ये लोग हकदार हैं, हक प्राप्त करनेके लिए दुःख सहते हैं और अब तो बहुत हो चुका । तब जाकर हमारी मांगें पूरी होंगी। आपके हक बड़ी सरकार नहीं देगी, दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति भी नहीं देगी। किन्तु खुदाके दरबारमें और उसे बीच में रखकर यदि आप सचाईके रास्ते से लड़ाई लड़ेंगे तो अध्यक्ष महोदयका कहना है, आपके बन्धन आठ दिनमें टूट जायेंगे; लेकिन मैं तो कहता हूँ, उसमें २४ घंटे भी नहीं लगेंगे। खुदा सब जगह है; वह सब-कुछ देखता है, सब कुछ सुनता है। मैं तो कहता हूँ कि ज्यों ही वह खुदा उनके दिलमें उतरेगा, हमारा छुटकारा हो जायेगा। जितनी तकलीफ उठानी चाहिए, उतनी हम नहीं उठाते; उठायेंगे तो तुरन्त बेड़ियाँ टूट जायेंगी । कल और कहूँगा, इसलिए आज अब ज्यादा नहीं कहता । आज सभी भाई एकत्र हुए हैं, इसके लिए 'आभार मानता हूँ, और चाहता हूँ कि मेरे शब्दोंको अपने मनमें अंकित कर सब खुदासे माँगें कि जो मेरे दिलमें है, वही सबके दिलमें हो । [१]

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १९-१२-१९०८

७०. भाषण : हमीदिया इस्लामिया अंजुमनकी स्वागत सभामें

[२]

[ जोहानिसबर्ग
दिसम्बर १३, १९०८]

मैंने कल कहा था कि हमें जीत मिली है। हमारी जीत हमारी तकलीफोंकी बदौलत मिली है; समाजके पन्द्रह सौ लोग जेल हो आये हैं, यह बात जीतके बराबर है। सात हजारमें से पन्द्रह सौ लोग जेल काट आये, इसे मैं जीत हो मानता हूँ । सरकारसे हमने जो माँगा वह नहीं मिला, इसलिए दुनियवी दृष्टिकोण से तो यही कहा जायेगा कि जीत नहीं मिली । अध्यक्ष महोदय ने कहा है कि मैं समाजका नेता हूँ इसलिए मैं जो कहूँ, आप वही करें। लेकिन, यह ठीक नहीं है । मैं समझता हूँ, मेरा फर्ज यह है कि मैं जो सुनूँ, मुझे जैसा सूझे, आपसे अर्ज कर दूं, और [ फिर ] आप जैसा कहें वैसा करूँ । मेरे कहनेके मुताबिक चलना-न-चलना आपकी

  1. इसके बाद गांधीजी अंग्रेजीमें बोले । अंग्रेजी भाषणकी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं है ।
  2. गांधीजी और इमाम अब्दुल कादिर बावजीरके जेलसे छूटनेपर उनके सम्मानमें १३ दिसम्बर, १९०८ को हमीदिया मस्जिद में यह सभा की गई थी ।