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नौ

दक्षिण आफ्रिकाके समाचारपत्रोंका रुख सत्याग्रह आन्दोलनके प्रति कुछ मुलायम पड़ा । मई १९०९ में जब गांधीजी जेलसे छूटे, उस अवसरपर 'प्रिटोरिया न्यूज़' ने अपने सम्पादकीय में कहा कि गांधीजी अन्तरात्माकी आवाजपर कष्ट भोग रहे हैं । उनका उद्देश्य "बहुत उच्च और उनके तरीके शुद्ध हैं ।" उसने ट्रान्सवाल सरकारसे अनुरोध किया कि ऐसे व्यक्तिको बारम्बार जेल भेजनेकी जगह उसके सहयोगसे कुछ लाभ उठाना चाहिए । जून १९०९ में भारतीयोंके एक ऐसे वर्गने, जो अबतक सत्याग्रहसे दूर रहा था, एक समझौता-समिति स्थापित की । गांधीजीको इस समिति के प्रयत्नोंकी सफलतामें विश्वास नहीं था, फिर भी उन्होंने समिति के प्रति सद्भाव रखा । समितिकी माँगोंको जब जनरल स्मट्सने ठुकरा दिया तो गांधीजीको इसपर कोई आश्चर्य नहीं हुआ ।

गांधीजी स्वयं सत्याग्रह जारी रखनेके पक्षमें थे, किन्तु अपने सहयोगियोंके विचारोंका आदर करते हुए उन्होंने जून १९०९ में समझौता-वार्ताकी दिशामें एक और "प्रयोग" करना स्वीकार कर लिया । सत्याग्रहका अमोघ अस्त्र तो हर हालत में उनके पास था ही । परिस्थितियाँ भी समझौता-वार्ताके पक्ष में लगती थीं । दक्षिण आफ्रिकी उपनिवेशोंका संघ स्थापित करनेके प्रस्तावको अन्तिम रूप दिया जा रहा था । संघ-स्थापनाके इस प्रयत्नको दक्षिण आफ्रिका के भारतीय शंकाकी दृष्टिसे देख रहे थे । गांधीजीने भी देखा कि यदि साम्राज्यीय सरकार भारतीयोंको कुछ संवैधानिक संरक्षण दिये जानेका आग्रह नहीं करेगी तो सम्भावना इसी बातकी है कि संघ-सरकार के अधीन भारतीयोंकी दशा और भी खराब हो जायेगी और उन पर अधिक निर्दय कानून थोप दिये जायेंगे । दक्षिण आफ्रिकाके राजनयिक नेता संघ-विधेयक के मसविदेपर विचार-विमर्शके लिए इंग्लैंड जा रहे थे । यह शीघ्र ही इंग्लैंडकी संसद में पेश होनेवाला था । आम तौरपर यह अनुभव किया जा रहा था कि साम्राज्यीय सरकारके बीच-बचावसे एक सन्तोषजनक समझौता करानेका यह एक सुअवसर हो सकता है । गांधीजीने यह स्वीकार किया कि परिस्थिति देखते हुए यह उचित प्रतीत होता है कि एक शिष्टमण्डल इंग्लैंड जाये । जून १३ को ब्रि० भा० संघने दो शिष्टमण्डल -- एक इंग्लैंड और एक भारत -- भेजनेका निश्चय किया । इन शिष्टमण्डलोंका उद्देश्य इंग्लैंड और भारतकी जनताको ट्रान्सवालके संघर्षका महत्त्व बताना और साम्राज्यीय सरकारको हस्तक्षेप करनेके लिए राजी करना था । ट्रान्सवाल सरकारने आकस्मिक जवाबी कार्रवाई करके शिष्टमण्डलोंके ज्यादातर निर्वाचित सदस्योंको गिरफ्तार कर लिया । गांधीजीने सदस्योंको पैरोलपर छुड़ानेके प्रयत्न किये, पर विफल हुए । अस्तु, जून २३ को गांधीजी और हाजी हबीब, इन दो सदस्योंका एक शिष्टमण्डल इंग्लैंड के लिए रवाना हुआ । दूसरे शिष्टमण्डलमें एक ही सदस्य था -- श्री पोलक ।

जहाजपर गांधीजीकी सर रिचर्ड सॉलोमन, श्री मेरिमैन, श्री श्राइनर और श्री सॉवर-जैसे दक्षिण आफ्रिकी नेताओंसे बातचीत हुई, और उनके मनमें भारतीय संघर्षके प्रति सहानुभूति उत्पन्न करनेमें वे सफल हुए । यात्राके दौरान ही उन्होंने "ट्रान्सवालके भारतीयोंकी समस्या : एक संक्षिप्त वक्तव्य" का मसविदा भी तैयार किया । जुलाई १० को लन्दन पहुँचनेपर संवाददाताओं को भेंट देते हुए गांधीजीने यह स्पष्ट कर दिया कि मेरा यह शिष्टमण्डल इंग्लैंडमें दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके परामर्श के अनुसार कार्य करेगा। वे समिति के अध्यक्ष, लॉर्ड ऍम्टहिलसे मिले, और इंग्लैंडमें शिष्टमण्डल किस ढंगसे अपना कार्य करे, इसके बारेमें Gandhi Heritage Portal