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दश

विचार-विमर्श किया । लॉर्ड ऍम्टहिलके सुझावपर गांधीजीने “संक्षिप्त वक्तव्य" का प्रकाशन स्थगित कर दिया; साथ ही, यह भी तय किया कि जबतक निजी तौरपर होनेवाली समझौता-वार्ताओंका परिणाम स्पष्ट न हो जाये, तबतक वे सार्वजनिक रूपसे कोई काम न करेंगे । गांधीजीको लॉर्ड ऍम्टहिलमें असीम विश्वास था, और जैसा कि इन दोनोंके बीच हुए पत्र-व्यवहारसे प्रकट होता है, समझौता-वार्ताके बारेमें लॉर्ड ऍम्टहिलकी दी गई समस्त नीति-विषयक सलाहको उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया ।

यह इतमीनान हो जानेके बाद कि गांधीजी और उनके सत्याग्रही अनुयायियोंका भारतके अतिवादियोंसे कोई सम्बन्ध नहीं है, लॉर्ड ऍम्टहिलने पूरी शक्तिसे ट्रान्सवालकी समस्याका कोई हल निकालनेका प्रयत्न शुरू किया । उन्हें विश्वास था कि भारतमें बढ़ते हुए असन्तोष और साम्राज्यीय हितोंके विचारसे समस्याको हल करना अत्यावश्यक है । ऐसे छोटे-छोटे मामलों में, जिनमें किसी सिद्धान्तका सवाल नहीं था, उन्होंने गांधीजीको समझौता करनेके लिए राजी पाया । लॉर्ड ऍम्टहिल जनरल बोथा और जनरल स्मट्ससे भी मिले, जो संघ-विधेयक के मसविदेके सिलसिले में उस समय इंग्लैंडमें ही थे । उन्होंने पहले तो गांधीजीसे यह आश्वासन लिया कि यदि काला कानून रद कर दिया गया और भारतीयोंकी सैद्धान्तिक समानता मान ली गई तो भारतीय आन्दोलनको आगे नहीं बढ़ायेंगे; इसके बाद उन्होंने स्मट्ससे कहा कि संघके निर्माणकी घड़ी में इन माँगोंको स्वीकार करके ब्रिटिश भारतीयोंको निरुत्तर कर दिया जाये ।

हाँ, यह ठीक है कि बातचीत गांधीजीने ही चलाई थी । वे लॉर्ड ऍम्टहिलसे बराबर सम्पर्क बनाये रखकर काम करते रहे; सर मंचरजी भावनगरी और न्यायमूर्ति अमीर अली-जैसे भारतीय नेता, सर रिचर्ड सॉलोमन, सर विलियम ली-वॉरनर और थियोडोर मॉरिसन-जैसे प्रभावशाली दक्षिण आफ्रिकी और अंग्रेज राजनयिकों और रेवरैंड एफ० बी० मायर तथा कुमारी फ्लॉरेन्स विटरबॉटम-जैसे मित्रोंसे भी मिले ।

सरकारी स्तरपर गांधीजी उपनिवेश मन्त्रालय में लॉर्ड क्रू और इंडिया ऑफ़िसमें लॉर्ड मॉर्लेसे ही ज्यादा मिले-जुले । लॉर्ड क्रू को समझौतेकी कोई आशा नहीं थी और उन्होंने निःसंकोच रूपसे इसे स्वीकार किया । १९०७ के अधिनियम २ के बारेमें भारतीयोंकी आपत्तियोंको उपनिवेश मन्त्रालयकी १८ अगस्त १९०९ को लिखी गई एक टिप्पणी में "कुटिल या निहायत भावुकतापूर्ण” बताया गया । गांधीजीके इस आग्रहका कि साम्राज्यके नागरिककी हैसियत से भारतीयोंका, एक नियत संख्यामें ही सही, ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेका कानूनी " अधिकार" मान्य किया जाये, स्मट्सने हठपूर्वक विरोध किया । वे ज्यादासे ज्यादा इस बात के लिए तैयार थे कि भारतीय प्रवासियोंकी एक सीमित संख्याको स्थायी अधिवासका प्रमाणपत्र दिया जाये । उपनिवेश मन्त्रालयने लाचारी प्रकट करते हुए कहा कि संवैधानिक दृष्टिसे उसके लिए यह सम्भव नहीं है कि वह दक्षिण आफ्रिकी राजनयिकोंसे उक्त मान्यता दिलवा सके । लॉर्ड ऍम्टहिलने हरचन्द कोशिश की कि उपनिवेश मन्त्रालय स्मट्सको गांधीजी द्वारा प्रवासी कानूनमें सुझाया गया संशोधन स्वीकार करनेके लिए किसी प्रकार तैयार करे, लेकिन वे नाकामयाब रहे ।

नवम्बर ३ को यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि समझौता-वार्ता विफल हो गई है । उपनिवेश मन्त्रालयने गांधीजीको सूचित किया कि वह उन्हें ऐसा कोई आश्वासन देने में असमर्थ है कि प्रवास-सम्बन्धी सैद्धान्तिक समानताको मान्यता दिलाई जा सकेगी । नवम्बर ५ को

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