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७७. नया वर्ष

पिछले वर्षका लेखा-जोखा हम ले चुके हैं।[१] अपनी जाँच-पड़ताल हमने विदेशो सम्वत् के अनुसार को, इससे हमें दुःख हुआ । हर विदेशी चीजकी जगह हम स्वदेशी दाखिल कर सकें तो दुःखका कारण न रहे । नये वर्ष में हम ऐसा करनेकी कोशिश करें, तो सहज ही सुखी हो सकते हैं । स्वदेशी में बड़ा और गम्भीर अर्थ समाया हुआ है । स्वदेशीका अर्थ सिर्फ इतना ही नहीं है कि स्वदेशको वस्तुओंका उपयोग किया जाये । उसका समावेश तो स्वदेशी में हो हो जाता है, किन्तु उसके सिवा और जिस चोजका समावेश उसमें होता है वह ज्यादा बड़ी और ज्यादा महत्त्वपूर्ण है । हम अपने बलपर जूझें, यह स्वदेशी है । " अपने बलपर जूझने " का अर्थ भी जानना चाहिए। " अपने बल" में हमारे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक, तीनों तरहके बलका समावेश होजाता है । तब फिर हमें [ इनमें से ] किस बलके सहारे जूझना है ? इस प्रश्नका उत्तर छोटा-सा है । आत्मा सबसे बढ़कर है; मनुष्य जाति उसीकी नींवपर खड़ी है । और उसो रास्ते लड़ने में अनाक्रामक प्रतिरोध या सत्याग्रह है। इसलिए भारतीयोंके लिए [ सफलताको ] सही कुंजी यही है ।

इस वर्ष ट्रान्सवाल और नेटालपर बहुत कुछ निर्भर होगा । ट्रान्सवालकी लड़ाई चल रही है। नेटालमें परवाने (लाइसेंस) का सवाल खड़ा होनेवाला है । यदि ट्रान्सवालमें भारतीय लड़ाईसे हट जाते हैं तो नेटालपर उसका तुरन्त ही खराब असर होगा; क्योंकि सम्भावना ऐसी है कि नेटालमें इस वर्ष बहुत-कुछ इसी लड़ाईपर निर्भर रहेगा । नेटालमें सरकारके पास फरियाद करनेसे कुछ मिलनेवाला नहीं है । तब फिर कैसे मिलेगा ? इस प्रश्नका उत्तर ट्रान्सवाल देता है । यानो, इस वर्ष क्या होगा, इस प्रश्नका उत्तर इस बातपर आधारित है कि ट्रान्सवालके भारतीय अन्ततक लड़ेंगे या नहीं ।

यह आशा की जा सकती है कि जिस कोमके लगभग दो हजार लोग जेल हो आये हैं वह कौम हारेगी हरगिज नहीं, भले ही उसमें कुछ देशद्रोही भी क्यों न मौजूद हों । इस तरह विचार करनेपर प्रत्येक भारतीय देख सकता है कि यह वर्ष कैसा निकलेगा, यह बात उसीके हाथ में है ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, २-१-१९०९


 
  1. देखिए " वर्षका लेखा-जोखा ", पृष्ठ ११८-१९ ।