पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/१५६

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७८. फीनिक्सकी पाठशाला

इस पाठशालामें [ बच्चोंके ] प्रवेशके लिए हमारे पास कितने ही माता-पिताओंके पत्र आये हैं। पढ़ाने के लिए हम तैयार हैं । परन्तु बच्चों को रखने में कुछ आर्थिक कठिनाइयाँ आती हैं। उन्हें दूर करनेकी हम कोशिश कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में, आशा है, हम अगले अंकमें विशेष जानकारी दे सकेंगे ।

इस बीच, जो लोग बच्चोंको पाठशाला में भेजना चाहते हैं, वे हमें उसको लिखित सूचना दें। इसी तरह, यदि वे यह भी सूचित करेंगे कि वे आर्थिक सहायता कितनी दे सकते हैं, तो निर्णय तुरन्त किया जा सकेगा ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २-१-१९०९

७९. नेटाल आनेवाले भारतीय यात्री

नेटाल आनेवाले भारतीय यात्रियों की असुविधाएँ बढ़ती जा रही हैं। इसमें दोष अधिकांशतः हमारा ही दिखाई देता है । कुछ यात्री [ उपनिवेश में ] प्रविष्ट होनेके लिए अधीर हो जाते हैं। यदि उन्हें प्रवेशका अधिकार नहीं है तो वे उसकी परवाह नहीं करते । फलतः उनके कारण अन्य लोगों को कष्ट उठाने पड़ते हैं । यदि इस सम्बन्ध में दोष हमारा है, तो उसका उपाय भी हमारे हाथ में होना चाहिए। हममें जब और जैसे-जैसे न्याय बुद्धि बढ़ेगी तब और वैसे-वैसे हमारे कष्टोंका अन्त होगा । अन्य सब उपाय झूठे हैं और उनको बादलमें थिगली लगाने जैसा समझना चाहिए।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, २-१-१९०९

८०. सत्याग्रहसे सबक

मै रित्सबर्ग में ग्रीन नामके एक गोरे सज्जन हैं। उन्होंने व्यक्ति कर देने से इनकार कर दिया। इसपर वे न्यायाधीशके सामने पेश किये गये । उन्होंने साफ-साफ बयान दिया कि यह कर अन्यायपूर्ण है; इसलिए वे यह देना नहीं चाहते । न्यायाधीशने उन्हें कैदकी सजा दी है, और वे इस समय यह सजा भोग रहे हैं । यह उदाहरण अनोखा है। श्री ग्रीन दूसरोंको नहीं उकसाते । वे व्यक्ति करको अन्यायपूर्ण मानते हैं । उन्हें बड़े-बड़े भाषण देना नहीं आता, इसलिए उन्होंने अपने मन में हो निश्चय किया कि वे स्वयं यह कर न देंगे । फलस्वरूप उन्हें कैद की सजा दी गई और वे उसे पसन्द करते हैं । इसीको कहते हैं सत्याग्रह । जिन्हें सत्य प्रिय होता है, वे दूसरोंका अन्धानुकरण नहीं करते । वे सत्यको खातिर स्वयं ही कष्ट सहन करते रहते हैं ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, २-१-१९०९