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८१. मेरा जेलका दूसरा अनुभव [१]

[१]

प्रस्तावना

मुझे सन् १९०८ की जनवरीमें जेलका जो अनुभव हुआ था, उसकी तुलना में मैं इस वारके अनुभवको ज्यादा अच्छा समझता हूँ। इसमें मुझे बहुत कुछ सीखनेको मिला है, और मैं मानता हूँ कि इससे दूसरे भारतीयों को भी लाभ होगा ।

सत्याग्रहकी लड़ाई कई तरहसे लड़ी जा सकती है। लेकिन राजनीतिक दुःखोंको टालनेका मुख्य उपाय जेल जाना ही दिखलाई पड़ता है। मैं मानता हूँ कि हमें समय-समयपर जेल जाना पड़ेगा, और सो केवल वर्तमान लड़ाईके लिए ही नहीं, बल्कि आगे हमारे ऊपर जो दूसरे कष्ट आयेंगे उनके लिए भी यही उपाय है । इसलिए जेलके विषय में जानने-जैसा जो भी हो वह सब जान लेना हम भारतीयोंका फर्ज है।

मैं पकड़ा गया

जिस समय श्री सोराबजी जेल गये उस समय मैंने चाहा था कि मैं भी उनके पीछे ही जेल पहुँचूँ तो अच्छा, नहीं तो कहीं ऐसा न हो कि उनके छूटने के पहले ही कौमकी लड़ाई पूरी हो जाये । मेरी यह इच्छा पूरी नहीं हुई। वहीं इच्छा बादमें जब नेटालके बहादुर नेता जेल गये तब प्रबल हो उठी और [ इस बार ] पूरी भी हुई। मुझे डर्बनसे वापस आते हुए ७ अक्तूबर [१९०८] को फोक्सरस्ट स्टेशनपर पकड़ा गया; क्योंकि मेरे पास स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) नहीं था और मैंने अपनी अँगुलियोंकी छाप देने से इनकार कर दिया था।

डर्बन जाने में मेरा उद्देश्य नेटालसे पढ़े-लिखे भारतीयोंको और ट्रान्सवालके पुराने भारतीय निवासियोंको ले आना था । ऐसी उम्मीद थी कि नेटालके नेताओंके पीछे भारतीयोंकी खासी बड़ी संख्या नेटालसे आनेके लिए तैयार हो जायेगी । सरकारका भी यही खयाल था । इस- लिए फोक्सरस्ट जेलके जेलरको वहाँ सौसे भी ज्यादा भारतीयोंके लिए व्यवस्था कर रखने का हुक्म मिला था । और प्रिटोरियासे तम्बू, कम्बल, बर्तन आदि भेजे गये थे। जिस समय कुछ भारतीयोंके साथ मैं फोक्सरस्ट स्टेशनपर उतरा उस समय वहाँ पुलिस भी काफी थी । लेकिन यह सारा प्रयत्न व्यर्थ गया । जेलर और पुलिस दोनों को निराश होना पड़ा, क्योंकि नसे मेरे साथ बहुत ही थोड़े भारतीय आये थे । उस गाड़ी में तो सिर्फ छः ही थे । आठ व्यक्ति और उसी दिनकी दूसरी गाड़ी में डर्बन से चले। इस तरह कुल मिलाकर चौदह भारतीय आये । हम सबको पकड़कर जेल ले जाया गया। दूसरे दिन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया; लेकिन मुकदमा सात दिनके लिए मुल्तवी कर दिया गया। हम लोगोंने जमानतपर छूटने से इनकार कर दिया। श्री मावजी करसनजी कोठारीको, जो अर्शकी बीमारी से पीड़ित होते हुए भी

  1. जेलके अपने पहले अनुभवपर लिखे गांधीजीके लेखोंके लिए देखिए खण्ड ८ ।