पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



१२४
सम्पूर्ण गांधी वाडमय

जेल आये थे, बीमारी बढ़ जानेके कारण और फोक्सरस्ट में धरनेदारोंकी जरूरत होने के कारण दो दिन बाद जमानतपर छुड़ा लिया गया ।

जेलकी स्थिति

हम जेल में पहुँचे उस समय श्री दाउद मुहम्मद, श्री रुस्तमजी, श्री आंगलिया लड़ाईका दूसरा दौर शुरू हुआ था -- श्री सोराबजी अडाजनिया तथा दूसरे भारतीय करीब पच्चीसको संख्या में वहाँ थे । उस समय रमजान का महीना चल रहा था, इसलिए मुसलमान भाई रोजा रखते थे । उनके लिए शामके समय श्री ईसप सुलेमान काजीकी ओरसे खाना आता था । इस सुविधाके लिए जेल अधिकारियोंसे विशेष अनुमति प्राप्त कर ली गई थी । इसलिए वे रोजा ठीकसे रख सकते थे । यद्यपि बाहरकी जेलोंमें बत्तीको सुविधा नहीं होती, फिर भी रमजान के कारण बत्ती तथा घड़ी रखनेका हुक्म दे दिया गया था । सब लोग श्री आंगलिया के नेतृत्व में नमाज पढ़ते थे। रोजा रखनेवालोंको शुरूके दिनोंमें तो सख्त काम दिया गया था, लेकिन बादमें उन्हें ऐसा काम नहीं दिया गया ।

बाकी भारतीय कैदियोंके लिए हमारे ही लोगोंको रसोई बनानेकी इजाजत थी । यह काम श्री उमियाशंकर शेलत और श्री सुरेन्द्रराय मेढने सम्भाला था, और बादमें जब कैदियोंकी संख्या बढ़ी तब श्री जोशी भी उनके साथ लग गये थे। जब इन भाइयोंको देश निकाला हो गया तब रसोईका काम श्री रतनशी सोढा, श्री राघवजी तथा श्री मावजी कोठारीपर आया । उसके बाद फिर जब आदमी बहुत ज्यादा हो गये तब उसमें श्री लालभाई और उमर उस्मान भी शामिल हो गये। इन रसोई बनानेवालोंको सुबह दो या तीन बजे उठना पड़ता था और शामके पाँचसे छः बजेतक उसीमें लगे रहना पड़ता था । जब बहुत-से कैदियोंको छोड़ दिया गया तब रसोईका काम श्री मूसा ईशाकजी और इमाम साहब बावजीरने लिया । इस तरह जिन भारतीयोंने हमीदिया इस्लामिया अंजुमन (हमीदिया इस्लामिक सोसाइटी) के अध्यक्ष और एक व्यापारीके --- जिनमें से किसीने भी रसोईका काम सच पूछिए तो कभी किया ही नहीं था ---हाथकी रसोई चखी, उनको मैं बहुत भाग्यवान मानता हूँ। जब इमाम साहब और उनके साथ के लोग छूटे, तब रसोईके कामका यह उत्तराधिकार मुझे मिला। मुझे उसका कुछ अनुभव था, इसलिए बिल्कुल असुविधा नहीं हुई । मुझे यह काम कुल चार ही दिन करना पड़ा। अब (यानी जब यह लेख लिखा जा रहा है) इस कामको श्री हरिलाल गांधी करते हैं । हम जेलमें दाखिल हुए उस समय रसोई कौन करता था, यह बात ऊपर दिये गये उपशीर्षकके अन्दर आती नहीं है; तो भी पाठकोंकी जानकारीके लिए यहाँ दे दी है।

हमारे जेल में दाखिल होने के समय सोनेकी तीन कोठरियाँ थीं। भारतीय कैदियोंका समावेश उन्हीं में किया गया था । इस जेल में भारतीयों और वतनियोंको अलग-अलग ही रखा जाता था।

जेलकी व्यवस्था

पुरुषोंकी जेलके दो विभाग हैं : एक यूरोपीयोंके लिए और दूसरा वतनियोंके लिए, जिसमें गोरोंसे भिन्न बाकी कैदियोंको जगह दी जाती है। इसलिए यद्यपि भारतीयोंको वतनियोंके विभाग में रखा जा सकता था, तो भी जेलरने उनके रहनेको व्यवस्था गोरोंके विभागमें कर दी थी ।