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मेरा जेलका दूसला अनुभव [१]

कैदियोंके लिए छोटी-छोटी कोठरियाँ होती हैं और हरएक कोठरीमें दस-पन्द्रह अथवा ज्यादा कैदी रखनेको व्यवस्था होती है। कैदखाना पूरा पत्थरका बना हुआ है। कोठरियाँ ऊँची हैं। दीवारोंपर पलस्तर है, और फर्श हमेशा धोया जाता है, इसलिए खूब साफ रहता है । दीवारोंपर भी अकसर चूना पोता जाता है, इसलिए हमेशा नई जैसी दिखती हैं । आँगन काले पत्थरका है और हमेशा धोया जाता है । उसमें तीन आदमी एक साथ नहा सकें, ऐसे फुहारे- दार नलको व्यवस्था है । दो पाखाने हैं और बैठनेके लिए बेंचें हैं। ऊपर कँटीले तारोंकी बनी हुई जाली जड़ी है । जाली इसलिए लगाई गई है कि कैदी दीवारपर चढ़कर भाग न जाये । हरएक कोठरी में हवा और प्रकाशकी अच्छी व्यवस्था है । उसमें कैदियोंको शामके छः बजे बन्द कर देते हैं और सबेरे छः बजे खोलते हैं । रातके समय कोठरियोंमें बाहरसे ताला लगा दिया जाता है। यदि किसीको रातके समय कुदरती हाजत हो तो वह कोठरीके बाहर नहीं जा सकता, इसलिए कोठरोमें हो हाजत रफा करनेके लिए कीटाणु नाशक पानी से भरा हुआ वर्तन हमेशा रखा रहता है।

खुराक

मैं जिस समय फोक्सरस्ट जेलमें पहुँचा उस समय वहाँ भारतीय कैदियोंको सुबहके समय पूपू [ मकईका दलिया ] और दोपहर तथा शामको चावल और कुछ शाक दिया जाता था । शाकमें ज्यादातर आलू होते थे । घी बिलकुल नहीं मिलता था । जो कच्ची जेल में थे[१] उन्हें उस खुराक के सिवा सुबह के साथ एक औंस चोनी और दोपहरको आधा पौंड डबल-रोटी मिलती थी । कच्ची जेलवाले कुछ लोग अपनी डबल रोटो और चीनी में से थोड़ा हिस्सा पक्की जेलवालोंको दे देते थे। कैदियों को हफ्ते में दो दिन मांस पानेका हक था । किन्तु हिन्दुओं अथवा मुसलमानोंको मांस न मिलनेके कारण उसकी एवज में कोई दूसरी चीज मिलनी चाहिए थी । इसलिए हम लोगोंने अर्जी[२] दी और उसका परिणाम यह हुआ कि हमें एक औंस घी और मांसके दिन उसकी एवज में आधा पौंड सेमकी दाल देनेका हुक्म हुआ। इसके सिवा, जेलकी बाड़ी में चौलाईको जो भाजी अपने-आप उगती थी उसे तोड़ने देते थे, और जब-तब बाड़ी में से प्याज ले आने की अनुमि भी थी। इसलिए घो और सेमको दालका हुक्म मिलनेके बाद खुराकके विषयमें कहनेके लिए ज्यादा नहीं रह जाता। जोहानिसबर्गकी जेल में खुराक कुछ अलग है । वहाँ चावल के साथ सिर्फ घी मिलता है, शाक नहीं मिलता। शामके समय दो दिन हरी भाजी और पूपू मिलता है, तीन दिन सेमकी दाल मिलती है और एक दिन आलू और पूपू मिलता है ।

यह खुराक हमारी आदतके अनुसार तो पर्याप्त नहीं कही जा सकती; फिर भी सामान्यतः बुरी नहीं कही जायेगी। बहुतेरे भारतीयों को पूपुसे नफरत है, इसलिए वे उसे जान-बूझकर नहीं खाते । किन्तु मैं तो इसे बड़ी भूल मानता हूँ । पूपू मोठा लगता है और शक्तिप्रद है। इस देशमें वह गेहूँको जगह ले सकता है। यदि उसमें शक्कर मिलाई जाये, तो वह बहुत स्वादिष्ट लगता है। लेकिन शक्कर न मिलाई गई हो तो भी भूख लगनेपर खाया जाये तो मीठा मालूम होता है । पूपू खानेकी आदत हो जाये तो यहीं नहीं कि ऊपर बताई हुई खुराकमें मनुष्य भूखा न मरेगा; उससे उसका शरीर मजबूत भी बनेगा । उसमें कुछ फेरफार किया जाये तो वह पूरी

  1. हवालाती अथवा विचाराधीन कैदी ।
  2. देखिए " प्रार्थनापत्र : रेजिडेन्ट मजिस्ट्रेटको ", पृष्ठ ९७-९८ ।