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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तरह सम्पूर्ण खुराकका काम दे सकता है। लेकिन दुःखकी बात यह है कि हम ऐसे स्वाद -लोलुप हो गये हैं और हमने अपनी आदतोंको ऐसा बिगाड़ा है कि हमें अपनी आदतके मुताबिक खुराक न मिले तो हम आपा खो बैठते है । ऐसा अनुभव हुआ मुझे फोक्सरस्टमें, और उससे मैं बहुत दुःखी हुआ । खुराककी शिकायत हमेशा होती रहती थी, और ऐसी चीख- पुकार अक्सर मची रहती थी मानो, खुराक ही हमारा जीवन हो या हम खानेके लिए ही जीते हों । ऐसा आचरण सत्याग्रहीको शोभा नहीं देता । खुराकमें फेरफार करानेकी कोशिश करना हमारा कर्तव्य है; लेकिन हमारा कर्तव्य यह भी है कि यदि फेरफार न हो तो जो मिलता हो उसी में सन्तोष मानकर हम सरकारको बता दें कि हम उससे हारनेवाले नहीं हैं । कुछ भारतीय केवल खुराककी असुविधाके कारण जेलसे डरते हैं । उन्हें विचारपूर्वक खुराकके विषय में अपनी लालसाओंको छोड़ना है ।

पक्की जेल मिली

जैसा मैं ऊपर कह चुका हूँ, हम सब लोगोंका मुकदमा सात दिन तक मुल्तवी रहा; इसलिए १४ अक्तुबरको मुकदमा चला। उसमें कुछ भारतीयोंको एक माहकी और कुछको छः सप्ताह की सख्त कैदकी सजा मिली। एक बालकको, जो ग्यारह वर्षका था, १४ दिनकी सादी कैद मिली। मैं इस भयसे चिन्तित था कि सरकार मेरे ऊपरसे कहीं मुकदमा उठा न ले । दूसरोंके मामले खत्म होनेके बाद मजिस्ट्रेटने मुकदमा कुछ समयके लिए मुल्तवी रखा, इसलिए ज्यादा घबड़ाया। पहले तो बात ऐसी चल रही थी कि मेरे ऊपर स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र न बताने और अँगुलियोंकी छाप न देनेका जुर्म ही नहीं, बल्कि दूसरे अनधिकारी भारतीयोंको ट्रान्सवालमें दाखिल करनेका जुर्म भी लगाया जायेगा । मैं इसी सोच-विचार में पड़ा हुआ था तभी मजिस्ट्रेट कचहरी में वापस आये और मेरे मामलेकी पुकार हुई । मुझे २५ रुपये दण्ड अथवा दो माहकी सख्त कैदकी सजा मिली। इससे मैं बहुत खुश हुआ और यह सोचकर अपनेको भाग्यवान समझने लगा कि मुझे दूसरे भाइयोंके साथ कैदमें रहनेका अवसर मिला ।

जेलके कपड़े

जेल में पहुँचने पर हमें कैदी के कपड़े दिये गये । एक छोटा परन्तु मजबूत पाजामा, मोटे कपड़े की कमीज, उसके ऊपर पहनने का एक ढीला जाकेट, एक टोपी, एक तौलिया, मोजे और सैंडल - इतनी चीजें मिलीं। मुझे लगता है कि ये कपड़े काम करनेके लिए बहुत अनुकूल हैं; टिकाऊ और सादे हैं । ऐसे कपड़ोंके खिलाफ हमें कोई शिकायत नहीं हो सकती। ऐसे कपड़े हमेशा पहनने पड़ें तो भी इसमें घबड़ानेकी कोई बात नहीं है । गोरोंको कुछ अलग किस्मके कपड़े मिलते हैं। उन्हें पेंदीदार टोपी मिलती है और घुटनों तक पहुँचनेवाले मोजे तथा दो तौलियोंके अलावा रूमाल भी मिलता है । रूमाल भारतीय कैदियोंको भी देनेकी जरूरत जान पड़ती है ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, २-१-१९०९