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८२. भेंट : 'नेटाल मर्क्युरी' को

[ डर्बन
जनवरी ५, १९०९]

नेटालवासी भारतीयोंके सुप्रसिद्ध नेता श्री गांधी, जिन्होंने पिछले वर्ष ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके आन्दोलनमें प्रमुख भाग लिया है, इस समय डर्बन आये हुए हैं और कल उनसे 'नेटाल मर्क्युरी' के प्रतिनिधिने भेंट की थी ।

उसने श्री गांधी ट्रान्सवालकी वर्तमान स्थितिकी रूपरेखा बताने और विशेषतः यह बताने की प्रार्थना की कि आन्दोलनका दूसरा चरण, जिसे “अनाक्रामक प्रतिरोध आन्दोलन " कहा जाता है, किन कारणोंसे आरम्भ हुआ । श्री गांधीने कहा :

मैंने 'मर्क्युरी' को अभी हालकी सम्पादकीय टिप्पणियाँ पढ़ी हैं, जिनमें कहा गया है कि हम इस आन्दोलनको उसी शिष्टता और शालीनता नहीं चला रहे हैं जिससे हमने इसे आरम्भ किया था। मैं कहना चाहता हूँ कि जब मैंने यह बात पढ़ी, मुझे बहुत दुःख हुआ; क्योंकि मैंने तो सदा यही समझा है कि 'मर्क्युरी' भारतीयोंसे उनके संघर्ष के सम्बन्ध में मतभेद रखता हो या मतैक्य, हमें उसने उचित तरीकों से लड़ने और नेकनीयती रखनेका श्रेय सदा ही दिया है। मैं निस्संकोच कह सकता हूँ कि हमने अपने संघर्ष में शिष्टता और शालीनताको भी नहीं छोड़ा । हमने जब यह संघर्ष आरम्भ किया था, सोच-विचारकर किया था । हमारी इच्छा यथासम्भव शुद्धसे-शुद्ध शस्त्र काममें लेनेकी थी और उस समय हमने जो सिद्धान्त स्थिर किये थे, उनका हमने त्याग नहीं किया है ।

इन सिद्धान्तोंकी संक्षेपमें परिभाषा पूछी जानेपर श्री गांधीने कहा :

हम सब प्रकारकी हिंसाके अवलम्बन से दूर रहे हैं और स्वयं कष्ट सहकर सरकारको केवल यह बतानेका प्रयत्न कर रहे हैं कि हम उस कानूनको न मानेंगे जो, हमारे खयालसे, हमारी अन्तरात्माको ठेस पहुँचाता है और अन्यथा आपत्तिजनक है । इसे अधिक अच्छा शब्द न मिलने के कारण " अनाक्रामक प्रतिरोध " कहा गया है। सीधी-सादी भाषामें कहें, तो यह वस्तुतः बुराईका उत्तर बुराईसे न देकर धैर्यपूर्वक बुराईसे लड़ना है । इसलिए इस संघर्ष में हिंसा करने या डराने-धमकाने का कोई प्रश्न नहीं हो सकता। साथ ही मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि भारतीय समाज के कुछ सदस्य इस उद्देश्यके लिए अपने उत्साह के अतिरेक में उन लोगोंके विरुद्ध धमकियों का प्रयोग करने में नहीं हिचकिचाते हैं, जिन्होंने साथ छोड़ दिया है और कानूनको माननेका [ निर्णय किया है ] ; किन्तु जब कभी ऐसे कार्य नेताओंकी नजरमें आये हैं, उनका उपाय तत्काल किया गया है; और ऐसे कार्योंसे अपने-आपको विलग कर लेनेका पूरा उद्योग किया गया है । हमपर यह आरोप भी लगाया गया है कि हमने नेटालके भारतीयोंको संघर्ष में भाग लेनेके लिए बुलाया है। यह सच नहीं है। नेटालके जो भारतीय ट्रान्सवाल गये हैं उन्हें ट्रान्सवाल में निवास करनेका अधिकार है । वे वहाँ इसलिए गये हैं कि उन्हें लगा, यदि वे मूलतः ट्रान्सवालके निवासी होने के नाते हमारे तपमें भाग न लें तो उसके फलको भोगने के