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भेंट : 'नेटाल मर्क्युरी' को

दूसरी शर्तोंको पूरा करनेके सम्बन्ध में उठाया गया है, जिनका जनवरीके समझौते के वक्त कोई खयाल नहीं था। इन शर्तोंमें एक शर्त यह थी कि हम शिक्षित भारतीयोंके अधिकारोंको छोड़ दें और ट्रान्सवाल प्रवासी कानूनके अन्तर्गत उनका निषिद्ध प्रवासी माना जाना मंजूर कर लें। मैं दावा करता हूँ कि इस प्रकारका सौदा कोई भी स्वाभिमानी भारतीय स्वीकार नहीं कर सकता । जहाँतक इस मामलेकी खूबियों और खामियोंका सम्बन्ध है, इस समय इस विवादका स्वरूप विशुद्ध सैद्धान्तिक हो गया है। सभी स्वीकार करते हैं कि, १९०७ का कानून उपनिवेशीय दृष्टिकोणसे भी, यदि प्रत्यक्ष हानिकर नहीं तो व्यर्थ अवश्य है। सर्वोच्च न्यायालयने, अपने अभी हालमें दिये गये दोनों फैसलोंमें ऐसा ही कहा है । भारतीयोंकी शिनाख्त या उनके पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) के लिए इसकी आवश्यकता नहीं है। यह बात पिछले सालके नये कानून से सन्तोषजनक रूपमें पूरी हो जाती है । इन शिक्षित भारतीयोंके सम्बन्ध में यह मान लिया गया है कि यदि हमें इस देशमें एक प्रगतिशील समाजके रूपमें रहना है तो हमें अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए कुछ अत्यन्त उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंको लानेका अधिकार है। शिक्षित भारतीयोंके सम्बन्ध में एकमात्र कठिनाई यह है कि जहाँ जनरल स्मट्स कहते हैं, वे केवल रियायतके तौरपर और अस्थायी अनुमतिपत्र ( परमिट) लेकर ही आ सकते हैं, वहाँ हम यह मानते हैं कि उनको आनेका अधिकार ही होना चाहिए, बशर्ते कि वे प्रवासी अधिकारी (इमिग्रेशन ऑफिसर) द्वारा लागू की गई शिक्षा परीक्षा पास कर लें । हमने यह भी कहा है कि यह परीक्षा इतनी कड़ी हो सकती है कि उससे किसी भी वर्ष में ऐसे केवल छः व्यक्ति ही ट्रान्सवालमें आ सकें। यह आसानी से किया जा सकता है, यह बात नेटाल, केप और आस्ट्रेलिया में चालू व्यवस्थासे सिद्ध हो जाती है। आस्ट्रेलियामें, जहाँतक मैं जानता हूँ, शिक्षा परीक्षासे एक भी एशियाई नहीं जाने दिया गया है।

श्री गांधीने आगे कहा :

अब अनाक्रामक प्रतिरोधियोंसे कहा गया है कि यद्यपि ये दोनों बहुत ही उचित मांगें अनाक्रामक प्रतिरोध आरम्भ किये जानेसे पहले स्वीकार की जा सकती थीं, अब स्वीकार नहीं की जा सकतीं; क्योंकि अनाक्रामक प्रतिरोध के सम्मुख झुकनेका वतनी लोगोंके मस्तिष्कपर बुरा प्रभाव पड़ सकता है । व्यक्तिगत रूपसे मेरा विचार यह है कि यह भय बिलकुल निराधार है । पहले तो, यदि हमारी माँगें उचित हैं तो हम अनाक्रामक प्रतिरोधी भले ही हों, वे स्वीकार की जानी चाहिए; और दूसरे, यदि वतनी लोग हमारे तरीकोंको अपना लें और शारीरिक हिंसा के स्थानपर अनाक्रामक प्रतिरोधसे काम लें तो इससे दक्षिण आफ्रिकाको निश्चित लाभ ही होगा । अनाक्रामक प्रतिरोधी अनुचित करते हैं तो वे उससे अपने आपको ही हानि पहुँचाते हैं। जब वे उचित करते हैं, तब उन्हें हर कठिनाईके बावजूद सफलता मिलती है। नेटालमें यह आसानी से देखा जा सकता है । जब बम्बाटाको लगा कि व्यक्ति कर लगाना अनुचित है, उन्होंने इन्स्पेक्टर इंटकी हत्या कर दी। अगर इसके बजाय वे केवल अनाक्रामक प्रतिरोधको अपनाते तो इतना रक्तपात न होता और बहुत-सा रुपया बच जाता। दूसरी ओर, अगर समष्टि रूपमें वतनी लोगोंको व्यक्ति-कर अखरता न होता, तो बम्बाटाका अनाक्रामक प्रतिरोध व्यर्थ हो जाता । इसके विपरीत, यदि वतनी लोग कर लगानेपर किसी बड़ी संख्यामें आपत्ति करते तो सरकार चाहे जितना बल प्रयोग करती, वह सम्भवतः उन लोगोंसे कर वसूल करनेके लिए ९-९