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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काफी न होता; वे किसी प्रकारके उपद्रवका आश्रय लिये बिना चुपचाप बैठे रहते और कर देने से इनकार करते रहते। इसलिए मेरी सम्मतिमें दक्षिण आफ्रिकाके उपनिवेशियोंको बल- प्रयोगके स्थान में अनाक्रामक प्रतिरोधका तो स्वागत करना चाहिए। और आखिर, क्या यह मूसाके दाँतके बदले दाँतके कानूनकी जगह ईसाके बुराईका प्रतिवाद बुराईसे न करने के कानूनकी स्थापना नहीं है ?

भेंटकर्ता : साररूपमें कहें, तो मेरा खयाल है कि यदि वादा किया गया था तो आप उस वादेपर जोर दे रहे हैं; या, वादा किया गया हो या न किया गया हो, आप १९०७ के एशियाई कानूनको रद करने का आग्रह कर रहे हैं, क्योंकि आप केवल यह चाहते हैं कि ट्रान्सवालमें शिक्षित भारतीयोंके आनके अबाध अधिकारकी स्थापना कर दें । यही बात है न ?

श्री गांधी : निश्चय ही, यदि वे परीक्षा पास कर सकें ।

भेंटकर्ता : लेकिन साम्राज्य सरकारने यह रुख इख्तियार किया है कि एक स्वशासित उपनिवेशकी सरकार जिसे चाहे प्रवेश करनेसे रोक सकती है; कमसे-कम मोटे तौरपर यही स्थिति ग्रहण की गई है। दूसरी ओर आप एक ऐसे हकका दावा करते हैं जिसे साम्राज्य- सरकार स्वशासित उपनिवेशका हक बताती है; और कहते हैं कि वह एक वर्ग-विशेषको आनेसे नहीं रोक सकती ।

श्री गांधी : मेरे खयाल से साम्राज्य सरकारने किसी भी अवस्थामें यह रुख इख्तियार नहीं किया है कि स्वशासित उपनिवेशको जिसे चाहे आनेसे रोकने का पूरा अधिकार है। लेकिन अगर ऐसी बात कही गई है, तो यह अबतक काम में लाई गई उपनिवेशीय नीतिका त्याग है । मेरा यह खयाल नहीं है कि साम्राज्य सरकार किसी ऐसे कानूनको पास कर देगी । साम्राज्य- सरकारने ट्रान्सवालके प्रवासी-कानूनके सम्बन्ध में भूल की— अर्थात् उसके किसी भी खण्डमें एशिया- इयों का उल्लेख नहीं था, सिर्फ अत्यन्त अप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख था; लेकिन ट्रान्सवाल सरकारने एक खण्डकी ऐसो व्याख्या की है, जिसका यह परिणाम होता है । साम्राज्य सरकारको उसे स्वीकार करनेके बाद अब प्रभावकारी हस्तक्षेप करने में बहुत कठिनाई हो रही है। अगर साम्राज्य- सरकार अब यह कहे कि स्वशासित उपनिवेशोंको चाहे जिसे आनेसे रोकने का पूरा अधिकार है तो इससे अबतक काममें लाई गई उपनिवेशीय नीतिमें एक नई बात जुड़ती है । आप जानते हैं कि १८९७ में स्वर्गीय श्री एस्कम्बने एशियाइयोंको इस उपनिवेशमें आने से रोकने के सम्बन्ध में श्री चेम्बरलेन के सामने कानूनका एक मसविदा पेश किया था। श्री चेम्बरलेनने तब कहा था कि वे उसे पास न करेंगे। उन्होंने सुझाव दिया था कि जो भी प्रवेश निषेध कानून बने वह जाति- विशेषपर नहीं, बल्कि सबपर लागू होना चाहिए। उस सुझावको मान लिया गया और तबसे नेटालके कानूनका अनुकरण सभी उपनिवेशोंमें किया जा चुका है । लेकिन मेरा ख़याल है कि साम्राज्य सरकारके मन्त्रियोंने चाहे जिसे आनेसे रोकनेके उपनिवेशोंके अधिकारके सम्बन्ध में जो कुछ कहा है उस बारेमें आपको कोई निश्चित घोषणा नहीं मिलेगी ।

यह पूछा जानेपर कि ट्रान्सवालमें इस समय स्थिति क्या है, श्री गांधीने कहा :

आज स्थिति यह है कि भारतीय पिछले दो वर्ष से संघर्ष कर रहे हैं और २,००० से अधिक लोग ट्रान्सवालकी जेलों में गये हैं--अर्थात् ट्रान्सवालकी वास्तविक भारतीय आबादीका एक- तिहाई भाग और ट्रान्सवालकी सम्भावित भारतीय आबादीका छठा भाग । इससे कुछ प्रतिनिधि