पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।



१३१
भेंट : 'नेटाल मर्क्युरी' को

यूरोपीयोंका भी विश्वास प्राप्त हो गया है और फलस्वरूप एक छोटी समिति बनाई गई है, जिसके अध्यक्ष श्री डब्ल्यू० हॉस्क्रेन हैं। इस समितिने ब्रिटिश भारतीयोंको वचन दिया है कि वह उनके संघर्ष में, आवश्यकता पड़ी तो, कैदका सामना करनेकी हद तक भी तबतक सहायता देगी जबतक उनकी माँगें, जिन्हें ये मित्र उचित मानते हैं, मान नहीं ली जातीं । सरकारका खयाल है कि वह हमें भूखों मारकर झुका सकेगी। यह बिलकुल सच है कि शायद कुछ लोग थक जायें और घुटने टेक दें; लेकिन मेरा विश्वास है कि हममें ऐसे लोगोंकी संख्या बहुत बड़ी और पर्याप्त है जो सब कठिनाइयोंके बावजूद संघर्ष जारी रखेंगे। कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपना कारोबार बेच दिया है, हर चीज छोड़ दी है और केवल संघर्ष चला रहे हैं; क्योंकि उनका खयाल है कि यह एक बड़े सिद्धान्तका सवाल है । और यदि मेरा अनुमान सत्य है, तो मैं यही कह सकता हूँ कि फल केवल एक ही हो सकता है, अर्थात् यह कि हमारी माँगें मान ली जायेंगी । यह काम कितनी जल्दी या देरसे होगा, यह हमारी अपनी शक्तिपर निर्भर होगा। फिर इंग्लैंडमें हमारी ब्रिटिश भारतीय समिति है । इसके अध्यक्ष लॉर्ड एम्टहिल भी इसी उद्देश्यसे काम कर रहे हैं। वे कभी भारतके कार्यवाहक वाइसराय थे । इस समिति में कई प्रभावशाली आंग्ल-भारतीय हैं, जिनका अनुभव बहुत व्यापक है और मेरा खयाल है कि यदि हममें पर्याप्त धर्म हो तो हमें सभीकी सहानुभूति मिल सकेगी । इस बीच ट्रान्सवाल सरकारने फिर सक्रिय कार्रवाई शुरू कर दी है । मुझे एक तार मिला है जिसमें कहा गया है कि लगभग ३० भारतीय निर्वासित कर नेटाल भेजे जा चुके हैं, वे ट्रान्सवालमें फिर प्रविष्ट हो गये हैं और अब मुकदमे चलाये जानेकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। मुझे मालूम हुआ है कि इस बार उनपर एक अलग धाराके अन्तर्गत मुकदमे चलाये जायेंगे, इसलिए वे कैदकी सजा भुगतेंगे । नेटालके नेता और ३३ दूसरे व्यक्ति न्यायाधीशके सम्मुख शायद कल लाये जायेंगे। उनका भी यही हाल होगा । इस तरह ट्रान्सवालकी जेलोंको भरनेकी प्रक्रिया आरम्भ हो गई है। देखना यह है कि वे इस कार्यको पूरा करते हैं या नहीं। जाहिर है, सरकार यह सोचती हैं कि इन कड़ी कार्रवाइयोंसे और न्यायाधीशों द्वारा कानूनमें निहित पूरी सजाएँ दी जानेसे भारतीय झुक जायेंगे तथा कानूनको मान लेंगे। लेकिन मेरा खयाल ऐसा नहीं है ।

भेंटकर्ता : क्या ट्रान्सवालके वैध-निवासी, कानूनपालक भारतीयोंको मौजूदा कानूनों के खिलाफ कोई ठोस शिकायतें हैं ?

श्री गांधी : अवश्य । यद्यपि हम इस समय किन्हीं ऐसी शिकायतोंके आधारपर नहीं लड़ रहे हैं, फिर भी शिकायतें तो हैं ही । उदाहरण के लिए, कानूनको सबसे ज्यादा माननेवाले भारतीयको भूमिके स्वामित्वसे वंचित कर दिया गया है और वह खास बस्तियोंको छोड़कर देशमें दूसरी जगह जमीनका कोई टुकड़ा नहीं खरीद सकता। यह एक अत्यन्त ठोस शिकायत कही जा सकती है। लेकिन हम जिस चीजके लिए लड़ रहे हैं, यह उससे अलग है । इस संघर्षके पीछे जो सिद्धान्त है या कभी था वह धार्मिक है, अर्थात् १९०७ के कानूनसे लोगोंकी धार्मिक भावनाओंको ठेस लगती है । लेकिन अब मुख्य उद्देश्यके मूलमें भारतीय जातिकी प्रतिष्ठा है, क्योंकि अब हमारे साथ या तो इस हैसियतसे व्यवहार किया जायेगा कि हम साम्राज्यके अभिन्न अंग हैं, या इससे कि हम उसके अभिन्न अंग नहीं हैं ।

भेंटकर्ता : यह एक बहुत व्यापक सिद्धान्त है । लेकिन जैसा में समझता हूँ, इस सब मामले में ट्रान्सवालमें शिक्षित भारतीयोंके प्रवेशके अधिकारका सवाल सारभूत है । अगर