किन्तु जब उन्होंने काम बन्द किया तब उन्हें तुरन्त ही मालूम हो गया कि पहली कठिनाई तो उन्हींको हुई।
यह कहानी मुझे उन कतिपय पत्रोंसे याद आई जो मुझे मिले हैं। इन पत्र लेखकोंने व्यापारियोंपर बहुत-से आरोप लगाये हैं । कुछने उनके लिए अपशब्द भी कहे हैं। कुछने उन्हें धमकी भी दी है। जेल जानेसे बचनेके लिए कुछ लोग धीरे-धीरे धार्मिक बहाने भी बनाने लग गये हैं । ये सब व्यापारियोंसे उसी प्रकार द्वेष करने लगे हैं जिस प्रकार अंगोंने पेटसे किया था। ये कहते हैं कि ट्रान्सवालके व्यापारियोंने फेरीवालोंसे दगा की है। उन्होंने उनको मार डाला है । उनको तो जेल भेज दिया, और स्वयं ऐश-आराम करते हैं । एक पत्र- लेखक जहाँ एक ओर फेरीवालोंका उल्लेख अत्यन्त आदरपूर्वक करता है, वहाँ दूसरी ओर कहता है कि वे सभाओं में खुलकर बोल नहीं सकते, क्योंकि व्यापारियोंसे दबते हैं । हमने इन पत्रोंको छापा नहीं है, क्योंकि इनसे समाजकी प्रतिष्ठा बढ़नेकी नहीं है । इन सब आरोपोंका कारण यह है कि कुछ व्यापारियोंने अपना व्यापार अपनी पत्नियों या गोरोंके नाम चढ़ा दिया है। व्यापारियोंका कर्तव्य है कि वे पेटकी भाँति अपना हृदय उदार रखें और फेरीवालोंको मिठास से समझायें । हमारा समाज दीर्घ कालसे दासता भोगता आ रहा है, उसने स्वतन्त्रता देखी नहीं है । इसलिए आज जब सत्याग्रहकी तलवारकी बदौलत स्वतन्त्रता देखनेका समय आया है और गुलामी से छुटकारा मिल रहा है, तब इसको पचाना छोटे और बड़े सभीको मुश्किल मालूम हो रहा है । कोई किसी दूसरेको अपनेसे चढ़ता देखता है तो सहन नहीं कर सकता । इसमें आश्चर्य कुछ नहीं है । जितने राष्ट्र स्वतन्त्र हुए हैं उन सभीको ऐसी अन्तरकी पीड़ा हुई ही है । बच्चे के जन्मसे पूर्व माँको मृत्यु-जैसी पीड़ा होती है, तब कहीं बच्चा जनमता है। इसी प्रकार हमें स्वतन्त्रता-रूपी बच्चे को देखने से पहले सरकार द्वारा दी गई पीड़ा ही नहीं भोगनी होगी, बल्कि आपसी व्यवहारकी पीड़ा भी सहनी होगी । व्यापारियोंपर ऊपर बताये गये आरोप बिना सोचे लगाये गये हैं। जिन व्यापारियोंने अन्तिम समयमें अपना व्यापार गोरोंके नाम चढ़ा दिया है, उन्होंने न तो पैसेका लोभ किया है और न वे जेलसे ही डरे हैं । उनमें से बहुत-से जेल जाने के लिए तैयार ही हैं । व्यापारको दूसरेके नाम देनेका हेतु यही है कि हम जानबूझकर सरकारके हाथमें गोला-बारूद न सौंप दें, जिसका उपयोग वह हमारे ही विरुद्ध करे। हमें फेरीवालोंको याद दिला देना चाहिए कि जब जनवरी [ १९०८]में भारतीयोंपर हाथ डाला गया तब मुख्य प्रहार नेताओंपर ही हुआ था । स्टैंडर्टनके लगभग सभी व्यापारी जेल भोग चुके हैं। संघके अध्यक्ष श्री काछलिया जेल हो आये हैं। श्री अस्वात और श्री नगदी प्रयत्न- पूर्वक जेल गये और सजा काटकर आये। इसी प्रकार इस समय श्री इब्राहीम काजी जेल काट रहे हैं । जब उन्होंने अपना व्यापार गोरेको सौंपा, तभी उन्हें जेल जानेका अवसर मिला । मिडेलबर्ग में श्री भाभाने जेल भोगी और क्रिश्चियानामें श्री बेलिम जेल गये । श्री मुहम्मद मियाँ इस समय भी कैद भोग रहे हैं। इस प्रकार बहुत-से व्यापारी जेल जा चुके हैं। जो लोग नेटालसे विशेष रूप से सहायता करनेके लिए आये हैं वे भी नेटालके प्रमुख दूकानदार हैं । इसलिए दूकानदारोंपर आरोप लगाना उचित नहीं है । फेरीवालोंको यह समझ लेना है कि वे दुकानदारोंसे ईर्ष्या नहीं करेंगे । दूकानदार जेल जायें तो इतने से वे सन्तोष मानें । उनको दूकान- दारोंने बर्बाद कर दिया, यह कहने से प्रकट होता है कि वे जेल जाना गलती मानते हैं। असल में हमें यह मानना चाहिए कि जिन्होंने हमें जेल भेजा है उन्होंने हमें फायदा पहुँचाया है ।