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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो जेल गया है, उसने कमाया है; जो नहीं गया, उसने गँवाया है। जिन्होंने देशकी खातिर पैसा गँवाया है उन्होंने ही असलमें पैसा कमाया है। जो अपने पैसे से चिपके रहे और अपने देश, प्रतिष्ठा और प्रतिज्ञा आदिको तिलाञ्जलि दे बैठे वे पैसा होनेपर भी कंगाल हैं । इसलिए हम आशा करते हैं कि हमारे पत्र लेखक और उनके मत से सहमत अन्य भारतीय हमारे कथनपर विचार करके संघर्षका त्याग नहीं करेंगे, बल्कि उसमें जमे रहेंगे और गफलत में पड़कर जीती बाजीको हार न बैठेंगे ।

यदि फेरीवालोंके लिए इस प्रकार सोचना उचित है, तो व्यापारी भी यों ही नहीं छूट सकते। यह नहीं कहा जा सकता कि उनकी ओर अँगुली उठाने जैसी कोई बात ही नहीं है । निःसन्देह उनमें से कुछ लोग डरपोक हैं, और कुछने पैसेको ही परमेश्वर मान रखा है। वे संघर्ष के संचालन में शक्ति नहीं लगाते । कुछ लोग केवल लम्बे-लम्बे भाषण देनेवाले ही हैं । सब व्यापारियोंको पेटके उदाहरण से शिक्षा लेनी चाहिए। पेटको स्वयं जितना मिलता है, उसकी अपेक्षा वह अंगोंको अधिक देता है। जहाँ अंग एक निश्चित समय तक ही काम करते हैं वहाँ पेट - अपने लिए नहीं, वरन् अंगोंके लिए - • चौबीसों घंटे काम करता है। इसी प्रकार व्यापारियोंको फेरीवालोंके और अपने ऊपर आश्रित अन्य लोगोंके हितोंकी रक्षा करनी चाहिए, उन्हें बड़ा होनेपर भी छोटा और सेठ होनेपर भी चाकर बनना है । काम न चले तभी व्यापार दूसरोंके नाम चढ़ाया जा सकता है । किन्तु यह अन्तिम उपाय है और आधे डरपोक लोगोंके लिए है । हम यह आशा करते हैं कि जो लोग शेर बनकर बैठे हैं, जो वीर सत्याग्रही हैं, वे तो किसी दूसरे-तीसरेके नामसे परवाना (लाइसेंस) न लेंगे और अपने धन्धेको समेटकर फिलहाल गरीबी इख्तियार करके समाजकी सेवा करेंगे। इसीमें बड़प्पन है, यही सच्ची सेठाई है । यह तो नहीं कहा जा सकता कि फेरीवालोंको किसीने शिकायतका मौका दिया ही नहीं है । किन्तु यदि सब व्यापारी अपने-अपने कर्तव्यका पालन करें और स्वार्थ त्यागकर परमार्थ करें तो किसीके लिए कुछ शिकायत करनेकी बात रहेगी ही नहीं । दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी दृष्टि अब ट्रान्सवालके व्यापारियोंपर लगी है । फेरीवालोंको स्वतन्त्र रहकर लड़ाई ललनी है; किन्तु यदि वे हार मान बैठें तो इसमें थोड़ा-बहुत दोष व्यापारियोंका भी माना जायेगा । दिन- प्रति-दिन ट्रान्सवालका कर्तव्य कठिन होता जाता है । हम खुदासे प्रार्थना करते हैं कि वह व्यापारियों, फेरीवालों और उसी प्रकार अन्य सब भारतीयोंको भी सुबुद्धि दे, दृढ़ रखे और इस महान् कार्यमें उनपर जो कष्ट आयें उनको सहन करनेका साहस प्रदान करे ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ९-१-१९०९