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मेरा जेलका दूसरा अनुभव – [४]

छः पेनी लेना स्वीकार किया। श्री सोमाभाईने स्टैंडर्टनको तार कर दिया था, इसलिए वहाँ भी कुछ भारतीय भाई स्टेशनपर आये थे और खानेकी चीजें लाये थे । इस प्रकार रास्ते में मैंने और सन्तरीने भरपेट खाना खाया |

फोक्सरस्ट पहुँचा तो स्टेशनपर मुझे श्री नगदी और श्री काजी मिले। वे दोनों रास्ते में कुछ दूरतक साथ-साथ आये। उन्हें थोड़ी दूर रहकर साथ चलने की अनुमति सन्तरीने दे दी थी। स्टेशनसे अपना सामान उठाकर मुझे फिर पैदल चलना पड़ा। समाचारपत्रोंमें इस बातकी भी काफी चर्चा हुई थी ।

मैं फिर फोक्सरस्ट पहुँच गया, इसलिए सब भारतीय बहुत खुश हुए। मुझे श्री दाउद मुहम्मदवाली कोठरीमें रखा गया था, इसलिए हम रातको देरतक एक-दूसरेके अनुभवोंकी बातें करते रहे ।

भारतीय कैदियोंकी स्थिति

मैं जब फोक्सरस्ट पहुँचा तब भारतीय कैदियोंकी स्थिति में फर्क आ गया था । ३० की जगह कैदियोंकी संख्या ७५ हो गई थी। जेलमें इतने लोगोंके रहने लायक जगह नहीं थी । इसलिए आठ-एक तम्बू लगाये गये थे । रसोईके लिए प्रिटोरियासे खास चूल्हा आया था। इसके सिवा, जेलके पास जो नदी बहती थी, उसमें कैदी अक्सर नहानेके लिए जा सकते थे । इस तरह वे कैदीके बजाय लड़वैये मालूम होते थे; और कैदखाना कैदखाने जैसा नहीं, बल्कि सत्याग्रही सैनिकोंकी छावनी-जैसा मालूम होता था। फिर सन्तरी अच्छा व्यवहार करें या बुरा, इसकी क्या परवाह थी ? सच तो यह है कि अधिकतर सन्तरी सब मिलाकर अच्छे ही थे । श्री दाउद मुहम्मदने हरएक सन्तरीका कोई-न-कोई नाम रख दिया था। एकका नाम उन्होंने "ऊकलो " रखा था; दूसरेका “मफूटो"। इस तरह अलग-अलग नाम रखे थे।

मुलाकाती

फोक्सरस्ट जेलमें मुलाकातके लिए भारतीय काफी संख्यामें आते थे। श्री काजी तो हमेशा आते ही रहते थे। कैदियोंकी बाहरकी व्यवस्था वे जी लगाकर करते थे और मुलाकातके लिए जितने मौके मिलते, सबका लाभ उठाते थे । श्री पोलक कार्यवश लगभग हर सप्ताह आते थे । नेटाल से श्री मुहम्मद इब्राहीम तथा श्री खरसानी कांग्रेसके मेन लाइनके चन्देकी वसूलीके सिलसिले में खास तौरसे आये थे । ईदके दिन तो नेटालके लगभग सौ भारतीय सेठ आकर मिल गये थे। उस दिन तारोंकी तो मानो वर्षा ही हो गई थी ।

विविध विचार

जेलमें सामान्यतः बहुत सफाई रखी जाती है। ऐसा न हो तो बीमारीके फट निकलने में देर न लगे । पर कुछ बातोंमें गन्दगी भी रहती है। एक-दूसरेका ओढ़नेका कम्बल हमेशा बदल जाता है। चाहे जैसे मैले-कुचले काफिरका ओढ़ा हुआ कम्बल कभी-कभी किसी भारतीय कैदीके हिस्सेमें भी आ सकता है। उसमें अक्सर जुँएँ पड़ गई होती हैं; उसमें से बदबू आती है। नियम तो यह है कि प्रतिदिन उसे धूपमें आधे घंटे सुखनेके लिए डालना चाहिए। लेकिन ऐसा शायद ही होता है। जिसे सफाई की आदत हो, ऐसे व्यक्तिके लिए कम्बलकी यह असुविधा कोई छोटी चीज नहीं है।