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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसा ही बहुत बार पहननेके कपड़ोंके बारेमें भी होता है। जो कपड़े एक कैदीने पहने हों वे उस कैदीके छूटनेपर हमेशा धोये नहीं जाते। उन्हें बिना धोये ही दूसरे कैदियोंको पहनने के लिए दे दिया जाता है। यह बहुत परेशान करनेवाली बात है ।

कैदियोंको जगहको कमीका विचार न करते हुए बहुत भारी संख्या में भर दिया जाता है । जोहानिसबर्ग की जेलमें केवल २०० कैदियोंकी जगह थी; वहाँ लगभग ४०० कैदी रखे जाते थे। इसलिए एक कोठरीमें कानूनके अनुसार जितने कैदी रखने चाहिए, कई बार उससे दूने कैदी रखे जाते हैं और कभी-कभी उनके लिए पूरे कम्बल भी नहीं मिलते। यह तकलीफ मामूली नहीं है। लेकिन कुदरतका कानून है कि मनुष्य अपने किसी विशेष दोषके बिना जिस स्थितिमें जा पड़ता है, उसके अनुकूल शीघ्र ही बन जाता है। भारतीय कैदियोंका भी ऐसा ही हुआ। ऊपर बताई हुई खटकनेवाली कठिनाइयोंमें भी भारतीय कैदी मजेमें रहे । श्री दाउद मुहम्मद सिर्फ स्वयं सारे दिन हँसते रहते थे, बल्कि अपने हास्य-विनोदसे सब भारतीय कैदियोंको भी हँसाते रहते थे ।

जेलकी एक दुःखद घटनाका उल्लेख करता हूँ। एक बार कुछ भारतीय कैदी एक जगह बैठे थे। इतने में एक काफिर सन्तरी वहाँ आया। उसने कुछ घास काटने जानेके लिए दो भारतीयोंकी मांग की। जब कुछ देर तक कोई न बोला तब श्री इमाम अब्दुल कादिर तैयार हो गये। ऐसा होनेपर भी कोई उनके साथ जानेको न उठा । सबके-सब दारोगासे कहने लगे कि वे हमारे इमाम हैं; उनको न ले जाओ। ऐसा कहने से दुहरी बुराई हुई। एक तो हरएकको घास काटने जाने के लिए तैयार होना चाहिए था, वह नहीं किया। और जब कौमका नाम रखनेके लिए इमाम साहब तैयार हुए, तब उनका पद प्रकट कर दिया। वे घास काटनेके लिए तैयार हुए, तब भी कोई दूसरा तैयार नहीं हुआ; ऐसा करके हमने अपनी निर्लज्जताका ही परिचय दिया ।

(क्रमश:)

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, २३-१-१९०९

१०३. पत्र : लेनदारोंके नाम

[१]

जोहानिसबर्ग
जनवरी २३, १९०९

सज्जनो,

मैंने जोहानिसबर्ग के व्यापारी, श्री अ० मु० काछलियाके लेनदारोंकी बैठकका विवरण[२] पढ़ा है। मैं बता दूं कि मेरी हालत बहुत-कुछ श्री काछलियाको-सो है। सरकारने जो कार्रवाई की है और जिसका हवाला श्री काछलियाने दिया है, उसके कारण मेरा माल खतरे में पड़ गया

  1. शायद श्री काछलियाके पत्रकी तरह ई० एम० अस्वातके इस पत्रका मसविदा भी गांधीजीने ही तैयार किया था । ई० एम० अस्वातने यह पत्र अपने लेनदारोंके पास भेजा था । बादमें वे श्री काहलियाके जेल चले जानेपर उनकी जगह ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गये थे ।
  2. देखिए " काछलियाके लेनदारोंको बैठकमें परवी ", पृष्ठ १५८ ।