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१०५. भेंट : 'रैंड डेली मेल'के प्रतिनिधिको

[१]

[ जोहानिसबर्ग
जनवरी २५, १९०९]

••• उनका [ श्री गांधीका ] कहना है कि उन्हें उपनिवेशियोंकी न्याय-भावनापर पर्याप्त भरोसा है और उनका विश्वास है कि ज्यों ही उपनिवेशियोंको सब तथ्य पूरी तरह ज्ञात हो जायेंगे, वे एशियाइयोंको "उनके अधिकार " दे देंगे ।

उन्होंने कल बातचीत में कहा कि भारतीय काफिरोंके साथ यूरोपीयोंकी अपेक्षा अधिक अच्छा और शिष्टताका बरताव करते हैं; बहुत कुछ इसी वजहसे उन्हें उनका व्यापार मिला है। उन्होंने इस बातको गलत बताया कि भारतीय यूरोपीय दूकानदारोंसे माल सस्ता बेचते हैं, लेकिन यह स्वीकार किया कि वे अपने कर्मचारियोंको यूरोपीय दुकानदारोंकी अपेक्षा कम वेतन देते हैं ।

लोग जो यह दोष देते हैं कि भारतीयोंने लेडीस्मिथ और पॉचेफ्स्ट्रमको यूरोपीय व्यापारियोंके लिए व्यापारके अयोग्य बना दिया है, इसका उत्तर देते हुए श्री गांधीने कहा कि वेरुलमकी तरह लेडीस्मिथका बहुत-कुछ कारोबार गिरमिटिया भारतीयोंसे चलता है। इसलिए वहाँ भारतीयोंकी दूकानोंका खुलना स्वाभाविक ही है।

उन्होंने कहा कि यदि यूरोपीय व्यापारियोंने ऐसा कड़ा और अड़ियल रुख अख्तियार किया, जैसा कहा गया है कि वे अख्तियार करेंगें, और यदि उन्होंने भारतीयोंको देशसे निकलवाने- के खयालसे उनकी जायदादोंकी जब्तीकी अर्जी दी तो हरएक भारतीय लौटकर भारत चला जायेगा और अनाक्रामक प्रतिरोधी बन जायेगा ।

अन्तमें उन्होंने कहा: “मैं स्वयं भारत सरकारके लिए सरदर्द बननेका प्रयत्न करूंगा । और तबतक सन्तुष्ट न हूँगा जबतक दक्षिण आफ्रिका में एशियाई व्यापारियोंको उनके अधिकार नहीं मिल जाते, या जबतक यह घोषित नहीं कर दिया जाता कि दक्षिण आफ्रिका अब ब्रिटिश उपनिवेश नहीं है ।

[अंग्रेजोसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-१-१९०९
  1. प्रस्तुत भेंटका विवरण २६-१-१९०९ के रैंड डेली मेलमें इस प्रस्तावनाके साथ प्रकाशित हुआ था कि ४० प्रमुख भारतीय व्यापारियोंने अपना कारोबार बन्द करनेके सम्बन्धमें श्री काछलियाके उदाहरणका अनुसरण करनेका निर्णय किया है; देखिए “पत्र : काछलियाके लेनदारोंको", पृष्ठ १५६-५७ । रिपोर्ट में यह भी सूचित किया गया था कि क्रूगसँडॉप और जोहानिसबर्ग में इस कार्रवाईके परिणामोंके सम्बन्धमें विचार करनेके लिए कुछ सम्मेलन होनेवाळे हैं । " इस बीच, श्री गांधी आन्दोलनको अपना सक्रिय समर्थन दे रहे हैं और संघर्षके परिणाम के सम्बन्ध में उनमें बहुत उत्साह दिखलाई पड़ता है । "