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११२. अंग्रेजी हवा

आजकल जब स्वदेशीकी भावना प्रबल हो रही है, कुछ साधारण बातोंको याद रखनेकी जरूरत है। हम देखते हैं कि बहुत-से भारतीय युवक थोड़ी-बहुत अंग्रेजी पढ़नेके बाद मानो अपनी भाषाको भूल गये हों, या मानो अंग्रेजी कोई बड़ी शानदार भाषा है, यह बताने के लिए, अथवा अन्य कारणोंसे, जहाँ जरूरत नहीं है वहाँ भी अंग्रेजी भाषाका उपयोग करते हैं। वे एक-दूसरेके साथ बातचीत करते समय अच्छी गुजराती, हिन्दी या उर्दू छोड़कर टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलते हैं। एक-दूसरेसे पत्र-व्यवहार भी अंग्रेजीमें करते हैं। ऐसा करनेवाले युवक अपनी स्वदेशीकी भावनाको विदेशी भाषामें ऐसे कठिन शब्दोंका, जिन्हें वे खुद भी नहीं समझ सकते, प्रयोग करके प्रकट करते हैं और फिर वैसा करके गर्व अनुभव करते हैं। यह बहुत सामान्य किन्तु बड़ा दोष है । जो जाति अपने जातीय भावकी रक्षा करना चाहती है उसमें अपनी भाषाके प्रति प्रेम और ममत्व तो होना ही चाहिए ।

हम बोअरोंका ही उदाहरण ले लें। उनकी अनीतिसे हमें सरोकार नहीं है । उनमें देशभक्ति तो भरपूर है। हमें उसीका अनुकरण करना है। डचोंके बालकोंके लिए अंग्रेजी भाषाकी बहुत जरूरत है, फिर भी वे अपने बच्चोंको स्थानिक डच, जिसे वे "टाल " कहते हैं, पढ़ाते हैं । इस टाल भाषाकी पुस्तकें थोड़ी ही हैं। फिर भी वे मानते हैं कि वे अन्तम उस भाषाको शक्तिशाली बना लेंगे। यह सम्भव है | उनमें इतना उत्साह है, इसीलिए वे राज्यका नियन्त्रण अपने हाथोंमें ले सके हैं।

यहूदी लोग अपनी भाषा यीडिशसे बोअरों-जितना तो नहीं, फिर भी बहुत प्रेम रखते हैं। यह भाषा थोड़े दिन पहले बिल्कुल ग्रामीण थी । बड़े-बड़े यहूदी मानते हैं कि जब यहूदियोंको यीडिश से सच्चा प्रेम होगा तभी वे राष्ट्र बन सकेंगे।

फिर, हमारी अपनी भाषाको हमें मान देना चाहिए। उसको समृद्ध करना और उसमें बहुत-सी पुस्तकें पढ़ना-लिखना हमारा कर्तव्य है।

इस लेखका अर्थ यह नहीं है कि हमें अंग्रेजी नहीं सीखनी है अथवा उसकी परवाह कम करनी है। वह भाषा शासकोंकी और वैसे ही लगभग विश्वकी भाषा बन गई है, इसलिए उसे हरएकके लिए सीखना जरूरी है। काम पड़नेपर उसका उचित उपयोग करना आना चाहिए । उसको अच्छी तरहसे लिखना और पढ़ना सीखने की जरूरत है। परन्तु जिस तरह कुछ युवक करते हैं उस तरह करने से कोई अर्थ-सिद्धि नहीं होती। कोई कम पढ़ा-लिखा व्यक्ति अपने जैसे ही कम पढ़े-लिखे व्यक्तिको अंग्रेजी में पत्र लिखे तो उसमें किसीका कोई लाभ नहीं । उससे पूरी-पूरी गलतफहमी होगी और खराब लिखने की आदत बढ़ेगी। अच्छा नियम तो यह जान पड़ता है कि जिसको पत्र लिखें यदि वह व्यक्ति हमारी मातृभाषा न जानता हो तो वहाँ अंग्रेजीका उपयोग किया जाये । हम अंग्रेजी तो सीखें, मगर अपनी भाषा न भूलें । अपनी भाषा सीखनेके बाद अंग्रेजी सीखें, अथवा दोनों भाषाएँ साथ-साथ सीखें, और ऊपरका नियम याद रखें । जिनको अपनी भाषाका अभिमान नहीं है और जो उसे पूरी तरह नहीं जानते, उनमें स्वदेशीका सच्चा उत्साह नहीं हो सकता है। गुजराती भाषा भारतकी दूसरी भाषाओंकी तुलना में बहुत