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तुर्कीका उदाहरण

दरिद्र अवस्था है; और हम देखते हैं कि स्वदेशीके उत्साहमें भी गुजरात सबसे पीछे है। गुजराती भाषाकी उन्नति करना गुजरातियोंका कर्तव्य है | वैसा करने से हम सब सच्चे भारतीय बन सकेंगे ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-१-१९०९

११३. तुर्कीका उदाहरण

तुर्कीमें संसदकी स्थापना हुई कि अंग्रेज तुरन्त झुक गये। ब्रिटिश लोकसभाके तीन सौसे ज्यादा सदस्योंने [ तुर्कीको] संसदके प्रति अपनी शुभकामनाएँ भेजी हैं। उसपर प्रधान मन्त्री श्री ऐस्क्विथके भी हस्ताक्षर हैं। कहा जाता है कि जो सदस्य हाजिर थे उन सभीने हस्ताक्षर किये। जो लोग तुर्कीमें संसदकी स्थापनाका अधिकार प्राप्त कर सके वे कौन थे, अब इसका विवरण अखबारोंमें आ रहा है। आस्ट्रिया तुर्कीसे भिड़ा, तो तुर्कीने तलवार म्यानसे निकाले बिना और बन्दूकसे गोली दागे बिना उसे जोरोंका थप्पड़ मारा । पाठकोंको याद होगा कि तुर्क जातिने आस्ट्रियाके मालका बहिष्कार किया था। यह बहिष्कार आस्ट्रियाके कुछ झुक जानेपर भी अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। अखबारी खबरोंके अनुसार आस्ट्रियाके अनुमानसे इस थोड़े-से समय में आस्ट्रियाकी १७,००,००० पौंडकी क्षति हुई है। तुर्कीके अनुमानसे यह क्षति ३०,००,००० पौंडकी हुई है। जब माल जहाज आस्ट्रियासे माल लेकर तुर्की के बन्दरगाहों में पहुँचे तब आस्ट्रियाके राजदूतने माल उतरवाने के लिए बहुत दौड़-धूप की, किन्तु तुर्क अधिकारियोंने उसकी कोई सुनवाई नहीं की। बोझा ढोनेवालोंतकने अपनी मजदूरी की परवाह नहीं की। बन्दरगाहमें आस्ट्रियाके मालको उतारनेवाला एक भी तुर्क नहीं मिला। इसपर आस्ट्रियाकी सरकारने सुल्तानको कड़ा विरोधपत्र लिखा । इससे तुर्क लोग समझ गये कि आस्ट्रियाको असह्य आघात लगा है और बहिष्कारका जोर दुगुना हो गया। पहले तो आस्ट्रियासे आनेवाली फेज (तुर्की) टोपी और दियासलाईका बहिष्कार किया गया। पीछे ज्यों-ज्यों लोगोंको यह पता चलता गया कि आस्ट्रियासे क्या-क्या माल आता है त्यों-त्यों वे दूसरे मालका भी बहिष्कार करते गये। पेरिसमें युवक तुर्की दल (यंग टर्क पार्टी) के प्रसिद्ध नेता अहमद रजा पाशासे किसीने पूछा तो उन्होंने कहा, "हमने बेशक आस्ट्रियाका बहिष्कार किया है और वह अभी चालू रहेगा। आस्ट्रियाको नुकसान होता है, यह देखना हमारा काम नहीं है। यह तो हमने हाथ आड़ा देकर अपना बचाव-भर किया है। पहला वार आस्ट्रियाने किया था, अब वह उसका स्वाद चखे । अखबारोंका कहना है कि इस भारी बहिष्कारसे ही इस्तम्बूल और विएनाके बीच सन्धिकी बातचीत शुरू हुई।

यह लड़ाई जातीय सम्मानके लिए लड़ी गई है और इस सम्मानकी रक्षा करने में गरीब और अमीर, किसीने भी अपने नुकसानकी परवाह नहीं की। इसीलिए आस्ट्रियाको चुपचाप दब जाना पड़ा। यह उदाहरण ट्रान्सवालके भारतीयोंके लिए अच्छी तरहसे हृदयंगम कर लेने योग्य है ।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-१-१९०९