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११४. मेरा जेलका दूसरा अनुभव [५]

धर्म-संकट

मैंने अभी आधी सजा ही काटी थी कि फोनिक्ससे तार आया कि श्रीमती गांधी बहुत बीमार हैं, हालत चिन्ताजनक है, अतः मुझे वहाँ पहुँचना चाहिए।[१] इस खबरको सुनकर सब लोग बहुत दुखी हुए। मेरा फर्ज क्या है, इस विषयमें मुझे कोई सन्देह नहीं हुआ। जेलरने पूछा, अब आप जुर्माना भरकर जाना चाहेंगे या नहीं ? मैंने तुरन्त उत्तर दिया कि मैं कभी जुर्माना भर हो नहीं सकता। सगे-सम्बन्धियोंसे विछोह होना भी हमारी लड़ाईका एक हिस्सा । जेलर सुनकर हँसा । उसे खेद भी हुआ । मेरा यह निर्णय पहली नजरमें कठोर-जैसा मालूम होगा, लेकिन मुझे विश्वास है कि ऐसी स्थितिमे सच्चा निर्णय यही था । मैं देश प्रेमको अपने धर्मका ही एक हिस्सा समझता हूँ । उसमें सारा धर्म नहीं आता, यह बात सही है। लेकिन देश-प्रेमके बिना धर्मका पालन पूरा हुआ नहीं कहा जा सकता। धर्मके पालन में स्त्री-पुत्रादिका वियोग सहन करना पड़े, तो वह भी करना चाहिए। [प्रसंग आनेपर ] उन्हें खो देनेके लिए भी तैयार रहना चाहिए। यही नहीं कि इसमें निर्दयताकी कोई बात नहीं है, बल्कि यही हमारा कर्तव्य है। जब इसी तरह हमें मरण-पर्यन्त लड़ना है, तो फिर दूसरा विचार हो ही नहीं सकता। लॉर्ड रॉबर्ट्सन हमारे कामसे कम दर्जेके काममें अपना एकमात्र पुत्र खो दिया; और चूँकि खुद लड़ाईमें फंसे हुए थे, इसलिए वे उसे दफन करनेके लिए भी नहीं जा सके।[२] ऐसे उदाहरणोंसे दुनियाका इतिहास भरा हुआ है।

काफिरोंका झगड़ा

जेलमें कुछ काफिर कैदी बहुत क्रूर प्रकृतिवाले होते हैं। उनमें लड़ाई-झगड़ा तो होता ही रहता है । कोठरीमें बन्द किये जाने के बाद वे आपसमें लड़ते रहते हैं और कभी-कभी सन्तरीसे भी लड़नेके लिए तैयार हो जाते हैं। इन कैदियोंने सन्तरीको दो बार पीटा भी था। ऐसे कैदियोंके साथ भारतीय कैदियोंको बन्द करने में जोखिम है, यह तो स्पष्ट ही है । यद्यपि भारतीय कैदियोंको लिए ऐसा प्रसंग नहीं आया; लेकिन सरकारी कानून जबतक यह कहता है कि भारतीय कैदियोंको काफिरोंके साथ गिना जाये, तबतक स्थिति खतरनाक ही कही जायेगी ।

जेलमें बीमारी

जेलमें बहुत से कैदियोंको कोई खास बीमारी नहीं हुई। श्री मावजीके विषयमें मैं कह चुका हूँ। श्री राजू नामके एक तमिल भाई थे। उन्हें जोरोंकी पेचिश हो गई थी। उनकी तबीयत बहुत कमजोर हो गई थी। कमजोर हो गई थी। उसका कारण उन्होंने यह बताया कि उन्हें हर रोज तीस प्याला चाय पीनेकी आदत थी; जेलमें चाय न मिलने से ही ऐसा हुआ। उन्होंने चाय माँगी थी, लेकिन चाय तो मिल नहीं सकती थी। पर उन्हें दवा दी गई और जेलके डॉक्टरने

  1. देखिए " पत्र : ए० एच० वेस्टको ”, पृष्ठ १०८ ।
  2. देखिए आत्मकथा, भाग ३, अध्याय १० ।