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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

जेल कौन जा सकता है ?

ऊपर दिये गये उदाहरणोंसे यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यसनी, जात-पाँतके गलत भेद माननेवाला, झगड़ालू, हिन्दू-मुसलमानमें फर्क करनेवाला और रोगी ये सब जेल जानेके लिए अयोग्य माने जाने चाहिए। ऐसे लोग वहाँ जायेंगे तो ज्यादा समय तक नहीं टिक सकेंगे । इस प्रकार हम देख सकते हैं कि देश-हितके लिए, सम्मान समझकर जेल जानेवाले लोगोंको शारीरिक मानसिक तथा आत्मिक तीनों दृष्टियोंसे स्वस्थ होना चाहिए। रोगी आदमी आखिरमें थक जायेगा । हिन्दू-मुसलमानमें भेद करनेवाला, मैं ऊँचा और दूसरा नीचा ऐसा विचार रखनेवाला, व्यसनमें फँसा हुआ तथा चाय, बीड़ी या दूसरी किसी वस्तुके पीछे पागल बना हुआ आदमी अन्ततक नहीं लड़ सकता ।

जेलमें मैंने क्या पढ़ा ?

यद्यपि सारे दिन कैदीको जेलमें काम रहता है, तो भी सुबह-शाम और रविवारके दिन कुछ पढ़नेका समय मिल सकता है। और जेलमें कोई दूसरी झंझट नहीं होती, इसलिए पढ़नेका काम शान्त मनसे किया जा सकता है। समय बहुत कम मिलता था, फिर भी मैंने महान लेखक रस्किनकी दो पुस्तकें, महान थोरोके निबन्ध, 'बाइबल' का कुछ हिस्सा, गैरिबाल्डीका जीवन-चरित्र (गुजरातीमें), लॉर्ड बेकनके निबन्ध (गुजरातीमें) तथा हिन्दुस्तान से सम्बन्धित दूसरी दो पुस्तकें पढ़ीं। रस्किन और थोरोकी पुस्तकोंमें ढूंढ़नेपर सत्याग्रहके तत्त्व भी मिल सकते हैं। उपर्युक्त गुजराती पुस्तकें सबके पढ़ने के लिए श्री दीवानने भेजी थीं। इसके सिवा, 'भगवद्गीता' तो लगभग हमेशा ही मैं पढ़ता था । इस अध्ययन और मननका परिणाम यह हुआ कि सत्याग्रहके विषयमें मेरा मत अधिक दृढ़ हो गया है और आज में कह सकता हूँ कि जेलसे थोड़ा भी घबड़ाने या ऊब उठनेका कोई कारण नहीं है।

दो प्रकारके विचार

ऊपर जो कुछ लिखा गया है, उसे पढ़कर हमारे मनमें दो प्रकारके विचार उठ सकते हैं ।

एक तो तो यह कि जेलमें जाकर बन्धन भोगना, मोटी, खुरदरी और खराब पोशाक पहनना, जैसा-तैसा खाना, सन्तरीकी लात सहना, काफिरोंके बीच में रहना, जो काम दिया जाये, वह रुचे या न रुचे फिर भी करना, अपने नौकर होने लायक सन्तरीकी हमेशा ताबेदारी करना, अपने सगे-सम्बन्धियों या दोस्तोंसे न मिल सकना, किसीको पत्र न लिख सकना, आवश्यक वस्तुओंका न मिलना, लुटेरों और चोरों आदिके साथ एक जगह रहना और सोना- यह सब कष्ट किसलिए उठाया जाये ? इससे तो मरना भला । जुर्माना देकर छूटना अच्छा, लेकिन जेल जाना अच्छा नहीं। भगवान करे, जेल किसीको न हो । यदि कोई इस तरह सोचे तो वह निर्बल हो जायेगा, जेलसे डरेगा और वहाँ जो धर्मकार्य करना है सो नहीं करेगा ।

दूसरा विचार जो हमारे मनमें उठ सकता है, यह है कि मैं देशके हितके लिए, अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षाके लिए, धर्म-पालनके लिए जेल जाता हूँ । यह तो मेरे सौभाग्यका चिह्न है । इसके सिवा, जेलमें मुझे कोई कष्ट तो है नहीं। बाहर मुझे अनेक लोगोंका हुक्म बजाना पड़ता है; लेकिन जेलमें मुझे किसी बातकी चिन्ता नहीं रहती। वहाँ न मुझे कमानेकी चिन्ता है और न खानेकी । खाना तो नियमपूर्वक दूसरे लोग पकाते हैं। मेरे शरीरकी