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ट्रान्सवाल्फी लड़ाई

हिफाजत सरकार करती है । इस सबके लिए मुझे कुछ देना नहीं पड़ता। और कसरत खूब हो जाये, इतना काम मिलता है। मेरे सारे व्यसन वहाँ अनायास ही छूट जाते हैं। मेरा मन मुक्त रहता है। मुझे ईश्वर-भजन करनेका सहज ही अवसर मिल जाता है। मेरा शरीर दूसरोंके अधीन होता है, लेकिन मेरी आत्मा अधिक मुक्त हो जाती है। मैं नियमके अनुसार उठता और बैठता हूँ। मेरे शरीरकी सार-सँभाल भी वे ही करते हैं, जो उसे नियन्त्रण में रखते हैं। इस तरह, किसी भी दृष्टि से देखें, वहाँ मैं मुक्त हूँ। कभी-कभी मेरे ऊपर कष्ट आ पड़ता है, कोई दुष्ट सन्तरी मुझे मारता-पीटता है, लेकिन उससे मैं धीरज रखना सीखता हूँ; और यह समझकर खुश होता हूँ कि यह अनुभव मुझे जेलमें ऐसी घटनाओंको रोकनेका प्रयत्न करनेका अवसर देता है । ऐसा सोचकर जेलको पवित्र और सुखदायक मानना और बनाना हमारे हाथ में है। थोड़ेमें कहें तो सुख और दुःख तो मनकी दो विभिन्न स्थितियाँ-भर हैं।

मैं आशा करता हूँ कि जेल-जोवनका मेरा यह दूसरा अनुभव पढ़कर पाठक इसी निश्चयपर आयेंगे कि देशके लिए अथवा धर्मके लिए जेल जानेमें, जेल-जीवनकी तकलीफ उठाने में अथवा दूसरी तरहसे मुसोबत झेलने में ही हमें सुख मानना है ।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-१-१९०९

(समाप्त)

११५. ट्रान्सवालकी लड़ाई

ट्रान्सवालकी लड़ाई अब पूरा जोर पकड़ चुकी है। [ ब्रिटिश भारतीय] संघके अध्यक्ष जेल गये । मद्रासियोंके लगभग सारे नेता जेलमें विराजमान हैं। दूसरे व्यापारी भी जेलमें हैं। इस प्रकार थोरोका यह कथन सच्चा सिद्ध होगा कि जो लोग अन्यायी राज्यमें अन्यायके आगे सिर झुकाना नहीं चाहते उनका निवास जेलमें होना चाहिए ।

इस बारकी सजा कोई सात दिनको या हफ्ते-दो-हफ्तेकी नहीं है।[१] हमारे जोहानिसबर्गके संवाददाताने खबर दी है कि थोड़े ही दिनोंमें बाकी नेता भी गिरफ्तार कर लिये जायेंगे। हम इस सबको सन्तोषजनक मानते हैं। जैसे-तैसे दुःख भोगनेका ढोंग करके थोड़े ही दिन जेलमें रहनेपर हम जो-कुछ माँगते हैं वह मिल जाता तो हम प्राप्त वस्तुको निभा या पचा न सकते । संसारका ऐसा नियम है कि जो वस्तु जिस उपायसे मिलती है उसको उसी उपायसे रखा जा सकता है। इसका अत्यन्त साधारण उदाहरण यह दिया जाता है कि शक्तिसे प्राप्त राज्य शक्तिसे हो निभाया जा सकता है। इसी नियमके अनुसार कुछ अहंकारी, स्वेच्छाचारी और नासमझ अंग्रेज यह मानते हैं कि तलवारके बलसे लिया हुआ भारत तलवारके बलसे ही रखा जा सकता है। यह मान्यता भूल-भरी है, यह सहज ही दिखाई पड़ जाता है। यहाँ तो हमने ऊपर जो नियम बताया उसको स्पष्ट करनेके लिए ही यह उदाहरण दिया है। इसलिए इस सम्बन्धमें ज्यादा कहने के बजाय हम इतना ही कहेंगे कि

  1. स्वयं गांधीजीको २५ फरवरीको तीन मासकी कैदकी सजा दी गई थी ।