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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है। अलबत्ता, उनके इस कार्यके फलस्वरूप दूसरे लोगोंपर अन्याय तो नहीं होता, यह अलग सवाल है। इस सम्मेलनने तो इतना ही सिद्ध किया है कि लोग यदि बुरे कामके लिए भी इकट्ठे होकर आन्दोलन करें, तो उन्हें कुछ सफलता मिल ही जाती है।

इस सम्मेलनके फलस्वरूप [सम्पूर्ण ] दक्षिण आफ्रिकाके लिए एक संसद और एक उच्च न्यायालयकी स्थापना होगी। संसदके मातहत मौजूदा उपनिवेशोंमें से प्रत्येक उपनिवेशके लिए एक परिषद होगी। यह परिषद साधारण कानूनोंकी रचना कर सकेगी। चुंगी और रेलवेका महकमा [ सारे देशके लिए] एक ही होगा। प्रिटोरिया इस संघ-राज्यकी राजधानी होगी। लेकिन संसदका अधिवेशन केप टाउनमें होगा। नया उच्च न्यायालय ब्लूफॉन्टीनमें रहेगा। दक्षिण आफ्रिकाका एक गवर्नर जनरल होगा। संसदके दो सदन होंगे; सीनेट और असेम्बली । सीनेटमें ४० सदस्य होंगे। उनमें से आठको सरकार नामजद करेगी। बाकी सदस्य प्रान्तों द्वारा चुने जायेंगे। असेम्बलीमें १२१ सदस्य होंगे; इनमें केपके ५१, नेटालके १७, ट्रान्सवालके ३६ और ऑरेंज फ्री स्टेटके १७ होंगे।

इस संघका परिणाम भारतीयों और दूसरे काले लोगोंके लिए भयंकर होगा। काले लोगोंको कहीं भी मताधिकार नहीं होगा, और इस रिपोर्टमें यह सिफारिश की गई है कि केप प्रान्तमें उन्हें जो भी मताधिकार प्राप्त है वह उनसे छीन लिया जाये। किन्तु मताधिकार तो एक मामूली-सी बात है। जहाँ हमें खड़े होनेकी भी जगह नहीं दी जा रही है, वहाँ मताधिकारका कोई उपयोग हो ही नहीं सकता। जहाँ गुलाम और गुलामोंके मालिक दोनों हों, वहाँ गुलामों और उनके मालिकोंको अपने ऊपरी अधिकारी नियुक्त करनेके लिए समान मताधिकार दिया जाये, तो भी गुलामको मिला हुआ मताधिकार किसी कामका नहीं होगा । वह मताधिकार उसके लिए तभी उपयोगी हो सकता है जब उसे पहले स्वतन्त्रता दी जाये और स्वतन्त्रताकी कीमत समझनेके लिए आवश्यक तालीम दी जाये । अन्यथा उसका मताधिकार मताधिकार ही नहीं है। इस देशमें हमारी स्थिति गुलामीकी है। स्वतन्त्रताका मूल्य समझनेके लिए आवश्यक तालीम भी हमारे पास नहीं है। ये दोनों वस्तुएँ हमें एक साथ मिलनी चाहिए। यह तो हो नहीं सकता कि जो हमारे मालिक कहे जाते हैं वे हमारी बेड़ियाँ खुद तोड़ दें। इसलिए हमें खुद ही अपनेको तालीम देनी होगी और अपने प्रयत्नोंसे ही स्वतन्त्रता प्राप्त करनी होगी। जबतक हमने ऐसा नहीं किया है तबतक मताधिकारका, हमारी रायमें, कोई मूल्य नहीं है। तो अब हम इस सम्मेलनकी दूसरी बेड़ियोंपर विचार करें।

विभिन्न प्रान्तों में जो भी कानून आज हैं, वे सब कायम रहेंगे। यानी, ऑरेंज रिवर कालोनी, ट्रान्सवाल आदिमें हमारे खिलाफ जितने भी कानून हैं वे सब ज्यों-के-त्यों रहेंगे। हमें एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्तमें जानेका अधिकार नहीं होगा; इसके सिवा नई संसदको दूसरे कानून बनानेकी सत्ता भी होगी। इसका नतीजा यह होगा कि विभिन्न उपनिवेशों या प्रान्तोंमें आज जो कठोरसे-कठोर कानून हैं दूसरी जगहोंमें भी वैसे ही कानून बनाये जायेंगे ।

सम्मेलनकी रिपोर्टसे यह स्पष्ट हो जाता है कि उससे ट्रान्सवालमें भारतीयोंका प्रश्न हल नहीं हुआ है। और यदि भारतीय हाथपर-हाथ घरकर बैठे रहे तो सारे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी हालत खराब हो जायेगी। हरएक भारतीय को, जो दक्षिण आफ्रिकामें गुलामकी तरह नहीं रहना चाहता, यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए; और यदि वह ट्रान्सवालका हो तो उसे अपना सिर हथेलीपर रखकर लड़ाईमें शामिल हो जाना चाहिए।