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हारे हुए लोगोंके लिए

यदि वह ट्रान्सवालसे बाहरका हो तो उसे ट्रान्सवालके भारतीयोंको ज्यादासे-ज्यादा प्रोत्साहन और सहायता देनी चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-२-१९०९

११८. हारे हुए लोगोंके लिए

पॉचेफ्स्ट्रम और क्लार्क्सडॉर्प हार गये। दूसरे शहरोंमें भी भारतीय हारे हुए जान पड़ते हैं। फिर, पॉचेफ्स्ट्रमसे तो अखबारोंमें तार भेजा गया है कि जो पाँचेफ्स्ट्रम बहुत मजबूत था, वह झुक गया, इसलिए दूसरे शहर तो झुकेंगे ही, और अब सत्याग्रह नहीं चलेगा।

जो हार गये हैं उनका कुछ कर्तव्य है। हम उनको उसका ध्यान दिलाना चाहते हैं । वे जानते हैं कि लड़ाई तो लड़ने योग्य ही है। उनसे कष्ट सहन नहीं हुए, इसलिए वे झुक गये । इस प्रकार जो गिरे हैं, उनके मनमें दूसरोंको गिरानेका खयाल न आना चाहिए। जो हार गये हैं वे भी सरकारको बता सकते हैं कि “हम जो हारे हैं, उसका कारण हमारी कमजोरी किन्तु जो हारे नहीं हैं, हम उनकी जीत चाहते हैं। हम उनको जितना सम्भव होगा, उतना बल देंगे। " वे इतना तो कर ही सकते हैं। ऐसा न करेंगे तो झुक जानेका कारण उनकी निर्बलता माननेके बजाय यह माना जायेगा कि वे जान-बूझकर देशके दुश्मन बन गये हैं। हारे हुए लोग अखबारोंमें लिख सकते हैं कि हम हार गये, मगर यह नहीं चाहते कि दूसरे भी हार जायें ।

वे ऐसा न करेंगे तो इससे लड़ाई कुछ बन्द नहीं हो जायेगी। लड़ाई चलेगी। किन्तु वे [हमारा] विरोध करेंगे तो वह लम्बी खिंचेगी। वे अपने हार जानेको कमजोरी मान लेंगे तो अर्थ यह होगा कि उन्होंने उतनी मदद की। उस हद तक लड़ाईकी अवधि भी कम हो जायेगी ।

इसके अलावा, यदि उनका जेल जानेका विचार हो तो वे जा सकते हैं । इटलीमें जब देश-प्रेमकी भावना लोगोंकी नस-नसमें दौड़ रही थी, तब जो लड़ाईमें भाग नहीं लेते थे वे भी उसका विरोध नहीं करते थे। वे अपनी दुर्बलता स्वीकार करके उससे अलग रहते थे; किन्तु दूसरी तरहसे बहुत सहायता दिया करते थे। वैसा ही हारे हुए भारतीय भी कर सकते हैं । इन विचारोंपर उन्हें ध्यान देना चाहिए। उनका कर्तव्य तो यह था कि वे श्री दाउद मुहम्मद आदिके नाम स्मरण करके मजबूत बने रहते। वैसा नहीं हुआ है, तो अब हमने इस इरादेसे कि उन्हें और ज्यादा कष्ट न हों, ऊपर जो बातें बताई हैं, उनके अनुसार वे काम कर सकते हैं।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-२-१९०९