पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८९
डंकनके विचार

लेखमें ध्यान देने योग्य बात यह है कि उसमें हमारी माँगको उचित माना गया है। यह भी बताया गया है कि जनरल स्मट्सने कानूनको रद करनेका विचार किया था । सरकारपर सत्याग्रहका दबाव बहुत अधिक पड़ा है, इस बातका भी उल्लेख है। संक्षेपमें, उस लेखसे यह बात निश्चित रूपसे सिद्ध हो जाती है कि सरकारको सत्याग्रहकी शक्तिके सम्मुख झुकना ही पड़ेगा। यह सब महत्त्वपूर्ण है। किन्तु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात तो यह बताई गई है कि अबतक सरकारके न झुकनेका कारण क्या है। फिर, श्री डंकन साफ-साफ बताते हैं कि शिक्षित भारतीयों [ के प्रवेश ] का प्रश्न बहुत गम्भीर है। मुख्य प्रश्न यह है कि उनको कानूनमें गोरोंके समान प्रवेशकी छूट दी जाये या नहीं। यह कैसे दी जा सकती है ? श्री डंकन कहते हैं कि यदि दक्षिण आफ्रिकामें मुख्यतः गोरोंको ही आबाद करना है तो यह छूट नहीं दी जा सकती। इसके सिवा, श्री डंकन कहते हैं कि यह प्रश्न ट्रान्सवालका ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण आफ्रिकाका है। यह समझकर ही साम्राज्य सरकारने प्रवासी मंजूर किया है। इसी खयालसे सब गोरे लड़ते हैं और अभीतक लड़ रहे हैं। यदि ट्रान्सवालके भारतीय लड़ाई छोड़ दें तो केप, नेटाल और रोडेशियामें वही कानून बन जायेगा। यदि ट्रान्स- वालके भारतीय लड़ाई चलाते रहेंगे तो पूरे आफ्रिकामें वैसा कानून नहीं बन सकेगा । श्री डंकनने इन विचारोंको बहुत विस्तारसे व्यक्त किया है। इससे यह अनुमान होता है कि सम्मेलनका निर्णय होनेपर ही भारतीय प्रश्नका समाधान होगा।

किन्तु इससे पहले तो यह आवाज सुनाई देती है कि सत्याग्रहका आन्दोलन बिखर गया । यदि सत्याग्रह ही नहीं चलता तो फिर हमें सम्मेलनसे क्या ? सम्मेलन कुछ भी क्यों न करें, किन्तु लड़ाई बन्द न होगी। सब भारतीय दो वर्ष तक लड़े। उन्होंने लड़ाईका स्वाद चखा। उसकी कुछ विशेषता उन्होंने देखी। सम्भव है, अब वे लड़ाईको छोड़ दें, किन्तु बहुत-से भारतीयोंके लड़ाई छोड़ देनेसे भी लड़ाई बन्द नहीं हो सकती। वह तो तबतक चलती रहेगी जबतक एक भी लड़नेवाला होगा। किन्तु जो भारतीय अभीतक झुके नहीं हैं, उनका ध्यान श्री डंकनके इस लेखकी ओर खींचना हमारा कर्तव्य है; और उन्हें श्री डंकनके शब्दोंको ध्यानमें रखते हुए लड़ाई जारी रखनी है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-२-१९०९