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१२१. श्री दाउद मुहम्मदकी देशसेवा

श्री दाउद मुहम्मद लगभग पकी उम्रमें कौमकी अनोखी सेवा कर रहे हैं। वे जेलके भयको जीत चुके हैं। उन्हें निर्वासित किया जाता है तो उसका भी भय नहीं मानते । बहुत-से लोगोंसे उन्होंने हँसते-हँसते यह कहा है : 'सरकार मुझे सीमान्तपर जहाँ चाहे वहाँ छोड़े।" दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंके लिए अब बार-बार जेल जाना, और पैसे-टकेकी परवाह न करना कोई अनोखी बात नहीं है। श्री सोराबजीकी, जिनसे सत्याग्रहका दूसरा दौर शुरू हुआ, मूल्यवान सेवाओंके सम्बन्धमें हम पहले ही लिख चुके हैं।[१] क्या जेलमें और क्या बाहर, वे चुपचाप अपना काम करते ही जाते हैं। परन्तु इस बार हमें श्री दाउद मुहम्मदकी सेवाओंके सम्बन्धमें विशेष रूपसे लिखना है। मनुष्यके कामका मूल्य दो प्रकारसे आँका जा सकता है। एक तो उस कामके मूल महत्त्वकी दृष्टिसे, और दूसरे उसके परिणामकी दृष्टिसे अर्थात् दूसरे मनुष्यपर उस कामका क्या असर होगा, उसकी तुलना करके। इस परिणामी मूल्यकी दृष्टिसे श्री दाउद मुहम्मदकी सेवाओंको कोई नहीं पा सकता । बात इतनी ही नहीं है कि श्री दाउद मुहम्मद नेटाल भारतीय कांग्रेसके अध्यक्ष हैं। वे दक्षिण आफ्रिकाके बहुत ही पुराने निवासी भी हैं। उनकी समझदारीका मुकाबला कर सकें, ऐसे बहुत कम भारतीय दक्षिण आफ्रिकामें होंगे। वे ऐसे होशियार हैं कि यदि वे अंग्रेजी पढ़े-लिखे होते तो आज किसी बड़े पदका उपभोग करते होते । उनकी व्यंग्य-शक्ति इतनी अच्छी है कि उससे बहुत से लोग सहज ही प्रभावित हो जाते हैं। उन्होंने बहुत अनुभव प्राप्त किया है। उन्होंने सैकड़ों रुपये लोगोंमें लगाये हैं। अपनी वाणी अथवा धनसे उन्होंने अनेक लोगोंका उपकार किया है। वे खुद पक्के मुसलमान हैं और सूरती लोगोंमें उनकी प्रतिष्ठा बहुत अधिक है। इन कारणोंसे उनके कामका परिणामी मूल्य बहुत बड़ा हो गया है। हम नहीं मानते कि दक्षिण आफ्रिकाका कोई भी भारतीय श्री दाउद मुहम्मदको जेलमें रहने देकर अपने-आपको सुखी मान सकता है । उनके जेलमें रहनेसे लड़ाईको लगातार जारी रखना भारतीय समाजका कर्तव्य हो गया है। इससे पाठक समझ सकते हैं कि श्री दाउद मुहम्मदका काम बहुत बड़ा है; और हम आशा करते हैं कि प्रत्येक भारतीय ऐसा ही समझकर यथाशक्ति प्रयत्न करेगा और लड़ाईमें मदद देगा । यदि ऐसा किया जाये तो हम समझते हैं कि श्री दाउद मुहम्मद और उनके साथियोंको जेलमें कदाचित छः मास भी नहीं बिताने पड़ेंगे। और यदि बिताने भी पड़ें और उसके बाद फिरसे जेल जाना पड़े, तो उससे भी क्या होता है ? उससे उनकी कीर्ति और अधिक स्थायी होगी; और हम लोगोंकी, जो जेलके बाहर हैं, अपकीर्ति होगी। कौन भारतीय जेलके बाहर रहकर अपकीर्तिका पात्र होना चाहता है ?

[गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-२-१९०९
 
  1. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३७२, ३९३ और ४२१ ।