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१२२. रोडेशियाकी जीत

हम इस अंकमें यह खबर दे रहे हैं कि रोडेशियामें ट्रान्सवालके ढंगका जो कानून बनाया गया था, उसे स्वीकृति नहीं दी गई है। इस कानूनका अस्वीकृत होना कोई छोटी बात नहीं है । हमें पाठकोंको स्मरण करा देना चाहिए कि इस विधेयकके विरुद्ध जो अर्जी दी गई थी उसमें कानून पास कर दिये जानेपर भारतीय उसे स्वीकार न करेंगे, इस आशयका प्रस्ताव था । सभी समझ सकते हैं कि इस कानूनके अस्वीकृत होनेका मुख्य कारण ट्रान्सवालकी लड़ाई है। भारतीयोंकी नई शक्तिसे ब्रिटिश सरकारको बहुत सचेत होकर काम करना पड़ता है। हम आशा करते हैं कि भारतीय इस प्रकार प्राप्त की हुई शक्तिको एकदम खो नहीं देंगे।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-२-१९०९

१२३. ट्रान्सवालसे बाहरके भारतीयोंका कर्तव्य

जान पड़ता है, ट्रान्सवालकी लड़ाई लम्बी चलेगी। उसी प्रकार यह भी लगता है कि अब उस लड़ाईमें भाग लेनेवाले भारतीय बहुत कम रहेंगे। उनकी मदद करना ट्रान्सवालसे बाहरके भारतीयोंका दोहरा कर्तव्य हो गया है। वे सार्वजनिक सभाएँ करके, उनमें प्रस्ताव पासकरके मदद कर सकते हैं। इससे दो उद्देश्य सिद्ध होंगे - एक तो यह कि जो गिरे नहीं हैं उनको प्रोत्साहन मिलेगा और जो गिर गये हैं वे शायद फिर उठेंगे। दूसरे यह कि उनकी सभाओं और उनके प्रस्तावोंसे शासक वर्ग यह समझेगा कि लड़ाईको चालू रखनेमें सब भारतीयोंकी सहमति है। प्रस्ताव पास करनेके अलावा रुपया इकट्ठा करनेकी जरूरत है। यह नहीं कहा जा सकता कि ट्रान्सवालमें इस रुपयेकी कितनी जरूरत होगी। लेकिन इंग्लैंडमें श्री रिचको पैसा भेजना तो बहुत जरूरी है। समिति भविष्यमें चलानी है या नहीं, इसपर हम यहाँ विचार नहीं करते; लेकिन समितिका काम समेटनेमें कुछ नहीं तो छः महीने लग जायेंगे। तबतक समितिको चलानेके अलावा कोई चारा नहीं है। हालमें ट्रान्सवालकी ओरसे श्री रिचको रुपया जा चुका है, इसलिए [फिलहाल ] ट्रान्सवालमें और रुपया बचाना मुश्किल है। अतः यह बोझा अब दूसरे उपनिवेशोंके भारतीयोंको उठाना चाहिए। हमारी दृष्टि मुख्यतः नेटालके ऊपर जाती है। नेटाल अबतक इस समितिको चलानेमें भाग लेता आया है। इसलिए हम आशा करते हैं कि वह इसबार भी अपना कर्तव्य पूरा करेगा ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-२-१९०९