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१२४. संघर्ष

इस पत्रके पाठक हमारे इस सप्ताहके स्तम्भोंसे देखेंगे कि सरकारने अब उन सत्या- ग्रहियोंको एक-एक करके पकड़ना शुरू कर दिया है जो शक्तिशाली, विश्वस्त और सच्चे सिद्ध हो चुके हैं। इस सम्बन्धमें हमारा खयाल है कि सरकार सभी दलोंकी ओरसे बधाईकी पात्र है। जिस गतिसे सरकार बढ़ रही है, उससे हम जल्दी ही, यदि सबको नहीं तो अधिकतर, सत्याग्रहियोंको जेलमें पायेंगे। हम झूठोंसे सच्चोंको अलग कर सकेंगे और सरकार स्वयं देख लेगी और उपनिवेशको भी दिखा देगी कि सच्चे सत्याग्रहियोंका उपनिवेशमें एशियाइयोंकी बाढ़से कोई सम्बन्ध नहीं है। वे धोखाधड़ीको बढ़ावा देनेसे कोई सरोकार नहीं रखते। जिस बातकी वे परवाह करते हैं और जिसके लिए वे लड़ रहे हैं, वह है उस समाजकी नेकनामी, जिसके वे सदस्य हैं, और यदि सरकारको ऐसे लोगोंको उनके जीवन-भर जेलमें रखना अनुकूल पड़ता है तो यह सत्याग्रहियोंको भी बहुत अनुकूल पड़ेगा। जेलोंमें रहनेपर भी उनके हाथोंमें समाजका सम्मान सुरक्षित रहेगा। उनकी पवित्र शपथका पालन हो जायेगा । वे जिस धर्मको मानते हैं उसका पालन कर सकेंगे। इससे अधिककी मनुष्यसे आशा नहीं की जा सकती। फिर, सरकार चाहे तो इस बातके लिए अपने-आपको शाबाशी दे सकती है कि उसने सत्याग्रहियोंको ऐसी स्थितिमें ला रखा है कि वे कोई हानि पहुँचा ही नहीं सकते। लेकिन तब संसार आन्दोलनको धार्मिकताको देख सकेगा, सो भी उस रूपमें जिस रूपमें अन्यथा नहीं देखा जा सकता।

सत्याग्रहियोंके शब्दकोषमें पराजय-जैसा शब्द है ही नहीं। इसका सीधा-सादा कारण यह है कि सत्याग्रहमें पाशविक बलकी परीक्षा नहीं होती। पाशविक बलकी परीक्षामें एकको तो अवश्य हार माननी पड़ती है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-२-१९०९

१२५. संविधान

संघ-अधिनियमके मसविदेको[१] हम जितनी अधिक बारीकीसे देखते हैं, वह हमें उतना ही कम जँचता है। वह दस्तावेज प्रजातीय पूर्वग्रह, प्रतिक्रियावाद और कमजोर जोड़-तोड़की गंधसे भरा हुआ मालूम होता है। हम उसे जितना पढ़ते हैं, उतना ही लगता है कि उसमें कोई सिद्धान्त नहीं है। उससे प्रकट होता है कि केपमें रंगदार मतदाताओंके मताधिकार छीननेकी बहुत बड़ी कोशिश की गई थी। और आज संविधानका जो रूप है वास्तव में उसमें भी उनके मताधिकारसे वंचित किये जानेकी चाहे थोड़ी ही हो -- सम्भावना है। हमें मालूम हुआ है कि साम्राज्य सरकारने खण्ड ३५ को पहले ही मंजूर कर लिया है। ट्रान्सवालमें हमने जो सबक सीखा है, उसे देखते हुए इसपर हमें कोई अचम्भा नहीं होता। नेटालके भावी रंगदार मतदाताओंका मताधिकार सचमुच छीन लिया गया है। संघ-अधिनियमके मसविदेसे उनके भावी विशेषाधिकार साफ छिन गये हैं और वे बिल्कुल विपत्तिमें पड़ गये हैं। फिर,

  1. ड्राफ्ट ऐक्ट ऑफ यूनियन ।