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पारसियोंकी बहादुरी

हालाँकि कुछ समयमें केपका प्रतिनिधित्व बढ़ जायेगा, परन्तु वह केवल यूरोपीय आबादीकी वृद्धिके आधारपर ही बढ़ेगा। रंगदार लोगोंकी उपेक्षा फिर की गई है, और केपके प्रतिनिधियोंकी जो संख्या बढ़ेगी, वह कुछ समय बाद इसी आधारपर वह अन्य उपनिवेशीय सदस्योंकी संख्या बढ़नेसे सन्तुलित हो जायेगी। इस तरह केपका लाभ, लाभ न रह जायेगा । श्री लिटिलटनने संविधानकी टीका करते हुए जब यह आग्रह किया था कि उसपर विचार करते वक्त ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिपर सावधानी और सहानुभूतिसे विचार किया जाये तब वे बहुत अच्छी तरह जानते थे कि उनके आग्रहका मतलब क्या है। लगता है कि उनकी बात सभीपर लागू होती है। स्पष्ट कहें तो अधिक-संगठित-संघकी योजना स्वतः चाहे कितनी ही सराहनीय हो, हम तो यही चाहेंगे कि साम्राज्यको इतना नुकसान पहुँचाकर उसे पूरा करनेके बजाय अनिश्चित वक्त तक टाल दिया जाये । वह बालूकी भीतसे भी ज्यादा कमजोर चीज़ होगी ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-२-१९०९

१२६. पारसियोंकी बहादुरी

हम तमिल समाजकी बहादुरीके सम्बन्धमें लिख चुके हैं। श्री चेट्टियार जेल पहुँच गये । इस समय बहुत-से तमिल जेलमें हैं, अर्थात् तमिल समाजने अपना तेज अभीतक मन्द नहीं होने दिया है। प्रिटोरिया [ समिति ] के अध्यक्ष श्री पिल्लेको भी छः महीनेकी सजा मिली है। जैसी बहादुरी तमिल लोगोंने दिखाई है, वैसी ही बहादुरी पारसियोंने भी दिखाई है। यह तो ईश्वरकी अद्भुत महिमा है कि पारसियोंकी आबादी संसार-भरमें एक लाखसे ज्यादा नहीं है, फिर भी यह समाज अपने कुछ उज्ज्वल गुणोंके कारण संसारमें प्रतिष्ठित है। यह कहा जा सकता है कि सच्चे अर्थोंमें भारतमें यही समाज राज्य चलाता है। बम्बई भारतकी वास्तविक राजधानी है और वहाँकी शान-शौकत मुख्यतः पारसियोंकी बदौलत है। उनकी दानशीलता सब जगह जाहिर है । वे राजनीतिक मामलोंमें अगुआ हैं और भारतके राष्ट्रपितामह दादाभाई भी पारसी ही हैं। ऐसे समाजके लोगोंका दक्षिण आफ्रिकामें भिन्न प्रकारसे व्यव- हार, करना सम्भव नहीं था। जैसे यह कहा जा सकता है कि समस्त तमिल समाज लड़ रहा है वैसे ही यह भी माना जायेगा कि समस्त पारसी समाज डटा हुआ है। पारसियोंकी संख्या दक्षिण आफ्रिकामें बहुत कम है, लेकिन नजर दौड़ाते हैं तो हमें ट्रान्सवालमें कोई पारसी ऐसा दिखाई नहीं देता जिसने सरकारके इस बेढंगे कानूनको माना हो । नेटालमें बसे पाँच या सात पारसियोंमें से तीन तो ट्रान्सवालकी जेलमें विराजमान हैं। श्री नादिरशाह कामाने अपनी नौकरी छोड़ दी । वे अब गिरफ्तार हो गये हैं और हमें आशा है कि थोड़े ही दिनोंमें जेलमें जा विराजेंगे। उनके भाई श्री अर्देशर कामा भी गिरफ्तार हो गये हैं। दूसरी ओर श्री मुल्ला बापू फीरोज भी पकड़े जा चुके हैं। यह दूसरे सब लिए शिक्षा लेने योग्य भारतीयोंके । हम पारसी समाजको बधाई देते हैं। उनकी शोभा सारे भारतीयोंकी शोभा है, क्योंकि वे भी भारतीय हैं। तमिल और पारसी लोगोंके सामने दूसरे भारतीयों - मुसलमानों और

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