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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गुजराती हिन्दुओं को-- अपना सिर झुका लेना चाहिए और शर्मिन्दा होना चाहिए। इन दो समाजोंके उदाहरण जब हमारे घरमें ही मौजूद हैं, तब हम भारतीयोंको दूसरे उदाहरण देकर क्या जोश दिलायें ? तमिल और पारसी तो जीत गये और जब लड़ाईका अन्त होगा तब सारा भारतीय समाज उसका लाभ उठायेगा; लेकिन जीतका यश तो उन्हींको देना ठीक होगा । वे ही राजा होंगे और राज्जपद उम्हींको शोभा देगा। हम दूसरे लोग प्रजा माने जायेंगे ।

[गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-२-१९०९

१२७. क्या भारतीय झुक जायेंगे ?

हम अखबार उठाते ही देखते हैं कि मैक्सिकोमें नाटक देखने गये हुए ५०० लोग नाट्य- शालामें आग लग जानेसे जल मरे । इंग्लैंडमें डरहमकी खानमें विस्फोट होनेके कारण २०० मजदूर दब मरे । अभी कुछ ही दिन पहले यह भी देखा था कि भारी वर्षाके कारण जोहानिसबर्ग के पासकी खानोंमें पानी भर जानेसे बहुत से लोग मर गये ।

ऐसी दैवी चेतावनियाँ हम लोगोंको समय-समयपर मिलती ही रहती हैं, फिर भी हम अपने निश्चित कर्तव्योंको करनेसे पीछे हट जाते हैं। या तो धन जानेके भयसे, या शारीरिक जोखिमसे या ऐसी ही दूसरी बाधाओंके कारण हम अपने द्वारा निश्चित कार्योंको पूरा नहीं करते। जिस शरीरका घड़ी-भरका भी भरोसा नहीं है उसकी सार-सँभालमें हम दिन-रात तल्लीन रहते हैं। ऐसे ही कारणोंसे ट्रान्सवालके भारतीय भी आज, जबकि बहुत-कुछ किनारे लगनेका अवसर आ गया है, पीछे लौटने लगे हैं। यह ऐसी बात है जो भारतीयोंको शोभा नहीं देती, फबती नहीं । हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया जाता है कि हममें पौरुष दम नहीं है । हम कुछ दिनों बहुत मेहनत करते हैं और फिर बैठ जाते हैं, अथवा यदि कुछ करते भी हैं तो मनमें चोरी रखकर करते हैं। अब इस आरोपको झूठा कर दिखाना भी ट्रान्सवालकी लड़ाईका एक अंग माना जा सकता है। यह लड़ाई ऐसी है जिसमें भारतीयोंके बहुत-से गुणों या दोषोंकी कसौटी हो जायगी। इसलिए सामान्यत: इसमें बहुत-सी बातें आ जाती हैं।

भारतीयोंको यह समझ लेना है कि इस लड़ाई में न एक-दूसरेकी ओर देखना है, और न एक-दूसरेकी ओर अँगुली दिखाना है। प्रत्येकको अपनी-अपनी हिम्मतको कसौटीपर कसना है। हमें याद रखना है कि हम जिन लोगोंके विरुद्ध लड़ रहे हैं वे खुद भी कठिन कष्टोंमें से गुजर चुके हैं। अभी सिर्फ ३०० साल पहले इस जातिके वीर पुरुष जल मरते थे, लेकिन अपनी टेक नहीं छोड़ते थे। जॉन बनियन[१] नामके एक धर्मात्मा हो गये हैं। आज उन्हें गोरे पूजते हैं। लेकिन उन्होंने अपने जीवनमें महान दुःख सहकर बारह वर्षका कठिन कारावास भोगा था। उन दिनोंकी जेल बिल्कुल अन्धकप ही होती थी। जॉन बनियनने जो कष्ट सहन किये, वे केवल अपनी टेक रखनेके लिए ही। उन दिनों लोग किसी खास गिरजेमें नहीं जाते थे तो उनको कैद कर लिया जाता था। जॉन बनियनने कहा कि उन्हें बड़ेसे-बड़े गिरजेमें भी कोई जबरदस्ती नहीं ले जा सकता। इसीसे उन्हें जेलकी सजा भोगनी पड़ी। वे जेलको

  1. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४८९ ।