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क्या भारतीय झुक जायेंगे ?

महल समझकर रहे। वहाँ उन्होंने जो पुस्तक लिखी आज उसको लाखों गोरे अत्यन्त श्रद्धा- पूर्वक पढ़ते हैं। ऐसा माना जाता है कि वैसी पुस्तकें दूसरी भाषाओंमें बहुत कम हैं। जॉन बनियनने इसकी परवाह नहीं की कि दूसरे लोग क्या करेंगे। उन्हें तो अपनी टेक रखनी थी, सो उन्होंने रखी, और जेलमें रहे। फिर भी, वे जीते। उन्हें जेलमें रखनेवाले लोगोंको आज भी दुनिया धिक्कारती है। इसके अतिरिक्त जॉन बनियन-जैसे मनुष्यके जेल जानेसे अन्य लोगोंको छुटकारा मिला। ऐसे व्यक्तिकी जातिके साथ हमारा पाला पड़ा है। हम तो मानते हैं कि यह हमारे लिए बड़े भाग्यकी बात है। हमें अपनेसे ओछी टेकवाले लोगोंसे टेककी सीख नहीं लेनी है। गीदड़से भाईचारा जोड़कर हम गीदड़ ही रहेंगे; और सिंहकी संगतिमें हमें या तो मर मिटना है या सिंहकी तरह ही गर्जन करना है। हमारा पाला सिंह जैसे गोरोंसे पड़ा है। वे हमपर बहुत जुल्म ढाते हैं। अगर हम सीधा सोचें, और उनसे टक्कर लें तो हमें दासता नहीं भोगनी पड़ेगी और हम ट्रान्सवालमें मुक्त रहकर उनकी बराबरीके बनेंगे । इस लड़ाईमें इतनी वीरताकी गुंजाइश है, जिससे हम उनकी बराबरीके बन सकते हैं। इस साहसकी सफलताके लिए आवश्यकता है सच्चे ज्ञान और सच्ची शिक्षा की। वह ज्ञान अक्षर- ज्ञान नहीं है और न वह शिक्षा बड़ी-बड़ी किताबोंको पढ़नेमें है। वह ज्ञान और शिक्षा इस बातमें है कि हम कौन हैं, यह समझें, यह जानें और इसे समझकर उसके अनुसार बनें और रहें ।

हमारी जोहानिसबर्गकी चिट्ठीसे प्रकट होगा कि अब सरकारने जोरोंसे धर-पकड़ शुरू कर दी है। जो भी आदमी दृढ़ माना जाता है, उसे वह पकड़ लेती है। हम गिरफ्तार किये गये लोगोंको बधाई देते हैं। हम ईश्वर, खुदासे प्रार्थना करते हैं कि उनमें अन्त तक लड़नेकी हिम्मत बनी रहे। उनके साहससे ट्रान्सवालके भारतीयोंका, दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका सच देखा जाय तो, समस्त भारतके लोगोंका भविष्य उज्ज्वल होगा। यदि वे थोड़े हैं तो इससे उन्हें डरना नहीं है। फिलहाल यह बात स्पष्ट है कि जो लोग गिरफ्तार नहीं हुए हैं वे हार ही गये हैं। और सामान्यतः यह समझा जा सकता है कि उन्होंने सरकारसे समझौता कर लिया है। यह सच है कि अभीतक कुछ जोरदार भारतीय भी नहीं पकड़े गये हैं । उनको भी धीरे-धीरे पकड़ लिया जायेगा। किन्तु समय ऐसा आ रहा है कि अब प्राय: सभी सच्चे सत्याग्रही जेलमें विराजेंगे। इसलिए हमारी खास सलाह है कि जो पूरा जोर लगाना चाहते हैं वे निर्भय होकर बाहर निकल पड़ें । उनको यह चिन्ता करनेकी जरूरत नहीं है कि उनके पीछे काम करनेवाला कौन रहेगा। आगे-पीछे, अगल-बगल, ऊपर-नीचे सब स्थानों में परमेश्वर तो है ही। उसीका भरोसा है। वही व्यवस्था करेगा। फिर मानवीय सार-सँभालकी क्या जरूरत है ? हमारी बिसात ही क्या है ? बहादुर श्री अस्वात कुछ समयमें जेल पहुँच जायेंगे । और हमें आशा है कि उनके बाद एकके पीछे एक अध्यक्षोंका ताँता बँध जायेगा । हम फिर याद दिलाते हैं कि जो भारतीय गिर गये हैं वे दुबारा गर्जन करके उठ सकते हैं। वे अपने परवाने फाड़ डालें, अपने प्रमाणपत्रोंकी होली जला दें। बस, वे स्वतन्त्र हो जायेंगे ।

लड़ाई लड़नेकी जैसी सुविधा ट्रान्सवालमें है वैसी हमने कहीं दूसरी जगह नहीं देखी । भारतीय ऐसे सुन्दर अवसरको क्यों न पहचाने और पहचानकर छोड़ क्यों दें, यह हम समझ ही नहीं सकते।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-२-१९०९