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१२८. हवा चली

अखबारोंसे खबर मिली है कि जो काम नेटालके भारतीय कर सकते थे, उसे अब दार-ए-सलामके भारतीय करना चाहते हैं। दार-ए-सलामके भारतीय जर्मन पूर्वी आफिका लाइनके जहाजोंका बहिष्कार करना चाहते हैं,[१] क्योंकि यह कम्पनी पहले दर्जेमें भारतीय यात्रियोंको नहीं लेती और लोगोंका सामान आदि खो जाये तो सुनवाई नहीं करती। रायटरका एक ऐसा तार बर्लिनसे आया है। व्यापारियोंने अपना माल इस कम्पनीके जहाजोंमें न मँगानेका विचार किया है और यहां तक कहा है कि कम्पनीके कर्मचारी सम्मानपूर्वक बरताव न करेंगे और कायदेसे न चलेंगे तो वे अपने खास जहाज रखकर उनसे काम लेंगे। इस प्रकार हम देखते हैं कि चारों ओर आत्मसम्मानकी स्वदेशभक्तिकी हवा बह रही है। सबको ऐसा लग रहा है कि दुनियामें एक देशके लोग दूसरे देशके लोगोंसे स्पर्धा कर रहे हैं। उसमें यदि भारतीय अपना सिर ऊँचा न करेंगे और सावधान न रहेंगे तो पिस्सूकी तरह कुचले जायेंगे और ऐसा हाल हो जायेगा कि उन्हें कोई कौड़ीके मोल भी नहीं पूछेगा ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-२-१९०९

१२९. फोक्सरस्टमें मुकदमा

[२]

फोक्सरस्ट
गुरुवार [फरवरी २५, १९०९]

आज सर्वश्री मो० क० गांधी, सोमाभाई पटेल और छ: दूसरे लोगोंको पंजीयन प्रमाणपत्र[३] पेश करने और अंगुलियोंकी छाप देने या शिनाख्तके दूसरे साधन प्रस्तुत करने से इनकार करने पर विनियमोंके अनुसार पचास पौंड जुर्मानेकी या तीन महीनेकी कड़ी कैदकी सजा दी गई। सभी जेल चले गये ।

श्री गांधीन अदालतमें बयान देते हुए कहा :

यह मेरी बदनसीबी है कि मुझे एक ही आरोपमें दूसरी बार अदालतमें पेश होना पड़ा है।[४] मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि मैंने इरादतन और जान-बूझकर यह अपराध किया है । मैंने ईमानदारीसे चाहा है कि पिछले अनुभवको देखते हुए अपने आचरणको जाँचूँ; और मैं अपने इस नतीजेपर कायम हूँ कि मेरे देशवासी चाहे जो करें या सोचें, मुझे तो राज्यके एक नागरिकके रूपमें और अपनी अन्तरात्माको सबसे ऊपर माननेवाले व्यक्तिके रूपमें तबतक सभी सजाएँ भोगते रहना चाहिए जबतक राज्य अपने नागरिकोंके एक वर्गके साथ, न्यायकी

  1. देखिए खण्ड ७, पृष्ठ ३१३ और ४२४-२५ ।
  2. मुकदमेका यह विवरण " हमारे निजी संवाददाता द्वारा प्रेषित " रूपमें छापा गया था । इसका शीर्षक था: “श्री गांधी जेल गये; इज्जत और ईमान छोड़नेसे इनकार करनेपर तीन महीनेकी कड़ी कैद ।
  3. रजिस्टेशन सर्टिफिकेट |
  4. पहले मुकदमेके लिए देखिए पृष्ठ १०५-६ ।