पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९७
सन्देश : दक्षिण आफ्रिका के भारतीयको

मेरी अपनी धारणाके अनुसार, न्याय नहीं करता। यदि मेरा यह आचरण निन्दनीय समझा जाये, तो इस एशियाई संघर्षमें मैं अपने आपको सबसे बड़ा अपराधी मानता हूँ । इसलिए मुझे खेद है कि मुझपर एक ऐसी धाराके अनुसार मुकदमा चलाया जा रहा है जिसमें मैं अपने लिए वही सजा नहीं माँग सकता जो मेरे कुछ साथी आपत्तिकर्ताओंको दी गई है। फिर भी मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे ज्यादासे-ज्यादा सजा दें। अदालत और सरकारी वकीलने मेरी पत्नीकी बीमारीकी वजहसे मुझे इतनी देर करनेकी मंजूरी देकर जो शिष्टता दिखाई है, उसके लिए मैं उनको धन्यवाद देना चाहता हूँ |

मजिस्ट्रेटने सजा देते हुए कहा : मैंने पहले भी कहा है कि यह अपनी-अपनी रायकी बात है। आपकी अपनी राय है। मैं तो कानूनके मुताबिक ही कार्रवाई कर सकता हूँ । चूंकि आप नहीं चाहते कि आपके साथ दूसरी तरहका बरताव किया जाये, इसलिए मैं आपसे वही बरताव करूंगा जो मैंने इस स्थितिमें पड़े दूसरे लोगों के साथ किया है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-२-१९०९

१३०. सन्देश : दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको

[१]

[ जोहानिसबर्ग
फरवरी २५, १९०९]

मैं फिर जेल जा रहा हूँ, इससे मुझे बड़ी खुशी हुई है। दुःख इतना ही है कि मुझ केवल तीन ही महीनेकी सजा मिली है, जब कि दूसरे सत्याग्रही देशसेवकोंको छः छः महीनेकी मिली है ।

आज जब मैं जेल जा रहा हूँ तब देखता हूँ कि बहुत से भारतीय पस्त हो गये हैं। अब थोड़े ही भारतीयोंको लेकर लड़ाई चलानी है। इससे मैं निडर हूँ । अब लड़ाई कुछ हद तक ज्यादा जोर पकड़ सकती है ।

जो लोग पस्त हो गये हैं वे फिर उठ सकते हैं और जेल जा सकते हैं। वे उठेंगे, ऐसी आशा रखता हूँ ।

यदि फिर नहीं उठ सकते तो भी वे पैसेकी मदद दे सकते हैं और अखबारोंमें लिख सकते हैं कि हार जानेपर भी वे लड़ाईमें साथ हैं और उसकी सफलता चाहते हैं।

ट्रान्सवालके बाहरके पढ़े-लिखे लोग यहाँ आकर जेल जा सकते हैं। यदि वे ऐसा न करें तो वे जहाँ हों वहाँ रहकर सभाओं में स्वयंसेवकोंका काम कर सकते हैं। दक्षिण आफ्रिकाके सब भारतीयोंका कर्तव्य है कि वे सभाएँ करें, तार दें और प्रस्ताव पास करें ।

यह लड़ाई दीनकी है, धर्मकी है, अर्थात् जो धर्म सब धर्मोमें व्याप्त है, यह उस धर्मकी लड़ाई है। यदि मेरी मान्यता ऐसी न होती तो मैं समाजको इस महा दुःखमें पड़नेकी सलाह न देता। मैं मानता हूँ कि इस लड़ाईमें अपने सर्वस्वकी आहुति देना भी कठिन नहीं होना

  1. यह २५ फरवरीको, जिस दिन गांवीजी जेल गये थे, लिखा गया मालूम होता है । देखिये अगला शीर्षक भी ।