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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

चाहिए। इसमें अपने सगे-सम्बन्धियोंकी, पैसे-टकेकी और अपनी जानकी कुर्बानी करना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि इस कर्तव्यको सब भारतीय पूरा करें, और भारतीयोंसे भी मैं यही माँगता हूँ । लड़ाईको जल्दी खत्म करना भी हमारे ही हाथमें है।

समाजका सेवक और सत्याग्रही,
मोहनदास करमचन्द गांधी

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-३-१९०९

१३१. संदेश : तमिल भाइयोंको

[१]

[ फोक्सरस्ट
फरवरी २५, १९०९]

अपने तमिल भाइयोंसे

संघर्षके दौरान तीसरी बार जेल जानेके पूर्व

मैंने अपने देशभाइयोंको गुजरातीमें एक पत्र[२] लिखा है। किन्तु सुन्दर तमिल भाषाका पर्याप्त ज्ञान न होनेके कारण आपको मैं अंग्रेजीमें लिख रहा हूँ। आशा करता हूँ कि मेरी बात आपमें से कुछ लोगों तक तो पहुँच ही जायेगी । संघर्ष अब अत्यन्त नाजुक स्थितिमें पहुँच गया है। भारतीय समाजके दूसरे वर्गोंके अधिकतर लोग बहुत कमजोर होनेके कारण हार गये हैं, परन्तु तमिल और पारसी समाजोंके अधिकतर लोग मजबूतीसे डटे हुए हैं। इसलिए लड़ाईका मुख्य भार उनके ही कन्धोंपर पड़नेवाला है। मैं प्रभुसे प्रार्थना करता हूँ कि वह आपको यह भार उठानेका पर्याप्त बल दे। आपने अपना कर्तव्य ज्ञानसे निबाहा है। याद रखिए कि हम प्रह्लाद और सुधन्वाकी सन्तानें हैं। वे दोनों ही शुद्धतम ढंगके सत्याग्रही थे । जब उनसे कहा गया कि वे ईश्वरको न मानें, उन्होंने अपने माता-पिताओंकी आज्ञा भी नहीं मानी। उन्होंने अपने उत्पीड़कोंको कष्ट देनेके बजाय स्वयं घोर कष्ट सहे । ट्रान्सवालवासी भारतीयोंसे जहाँतक अपने पुंसत्वका परित्याग करने, अपनी प्रतिज्ञासे पीछे हटने और अपने राष्ट्रका अपमान मंजूर करनेके लिए कहा जाता है, वहाँतक ईश्वरको मानने से इनकार करनेके लिए ही कहा जा रहा है। क्या हम वर्तमान संकटमें अपने पूर्वजोंसे कम उतरेंगे ?

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-३-१९०९
  1. यह सन्देश ६ मार्च १९०९ के इंडियन ओपिनियन में "मद्रासियोंको सन्देश : श्री गांधीका अन्तिम आग्रह " शीर्षकसे छपा था । आफ्रिकन क्रॉनिकलने इसका तमिल अनुवाद ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघकी मार्फत मुफ्त बँटवानेके लिए परिशिष्टके रूपमें प्रकाशित किया था ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक ।