१३२. पत्र : श्रीमती चंचलबेन गांधीको
फोक्सरस्ट जेल
ट्रान्सवाल
फरवरी २६, १९०९
तुम्हारा पत्र बिल्कुल ही नहीं है, इससे मैं खिन्न हूँ। देखता हूँ, बाकी तबीयत ठीक होती जा रही है। उसको अच्छे-अच्छे लेख और अच्छे-अच्छे काव्य पढ़कर सुनाना । बासे पूछकर मुझे बराबर पत्र लिखा करो। उसमें तुम और मणिलाल सही किया करो । बाके विचार पूछकर वे जो कहें वह भी लिखा करो ।
तुम अपनी तबीयतकी खबर देना और अपने दाहिने कान, पैर तथा खाँसीकी हालत बताना ।
खानेमें मैंने जो फेरफार किया है, उसे आज्ञारूप समझकर उसका पालन करना । दूध और सागूदानेकी खीर नियमसे लेना । रामीको अभी थोड़े दिन दूध पिलाती रहना । दूध पिलाना बन्द करनेके बाद भी ठीक खुराक लेती रहना । जबतक खुली हवा नहीं मिलेगी तबतक तबीयत बिल्कुल ठीक नहीं होगी। अधिक कुछ लिखनेको नहीं है।
विलीसे[१] कहना कि उपद्रव बिल्कुल न करे । रामदासका गला खराब हो तो मिट्टीकी पट्टी बाँधना ।
मोहनदासके आशीर्वाद
हरिलाल और मैं दोनों मजेमें हैं। तुमसे हम यहाँ ज्यादा सुखी हैं, ऐसा मानना ।
यह पत्र बाको पढ़ा देना ।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ९५२५) से ।
- ↑ कॉर्डिजका पुत्र।