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१३४. नेटालसे सहायता

नेटालमें ट्रान्सवालकी लड़ाईको प्रोत्साहन देनेके लिए सभा करनेपर हम [ नेटाल भारतीय ] कांग्रेसको बधाई देते हैं। हमारे मतसे उस सभामें उपस्थिति कम थी, उत्साह भी कम था और सभा जितनी जल्दी करनी थी उतनी जल्दी नहीं की गई। इसलिए हम यही समझकर सन्तोष मानते हैं कि “मामा न होनेसे काना मामा होना ठीक " । लेकिन नेटालके नेताओंने जितना कम किया उनकी उतनी कमी तो मानी ही जायेगी ।

हम ऐसा मानते हैं कि उन्हें सभा करके बैठ नहीं जाना चाहिए। जितने लोगोंको गिरफ्तार करना है उतनोंको गिरफ्तार करके सरकार बैठी-बैठी तमाशा देखेगी। किन्तु ट्रान्सवालसे बाहरके भारतीय बैठे नहीं रह सकते। उन्हें हमेशा भारतको खबरें भेजनी पड़ेंगी, तार देने होंगे, ट्रान्सवालके जो लोग गिर गये हैं उनको उठाना होगा और इस प्रकार लड़ाईको सारी दुनियाके सामने रखना होगा । ऐसा हुआ तो देवता भी देखनेके लिए उतरें, यह ऐसा संग्राम होगा। यदि यह सब नहीं हुआ तो भारतीयोंकी हँसी होगी और थोड़े दिनोंमें उनके पैर दक्षिण आफ्रिकासे उखड़ जायेंगे ।

हमने नेटालकी सभाके बारेमें लिखा । ठीक देखें तो सभा केवल डर्बनकी थी। मैरित्सबर्ग कहाँ गया ? नेटालके दूसरे शहर कहाँ गये? वे सभाएँ क्यों नहीं करते? मेन लाइनका झगड़ा अभी तय नहीं हुआ। लोग नामके लिए मर रहे हैं और उनके भाई जेलोंमें दिन काट रहे हैं। यह कोई शोभनीय बात नहीं है। मेन लाइनका झगड़ा तय होना जरूरी है । अगर वह तय न हो तो भी नेटालके दूसरे शहरोंमें काम चल सकता है ।

जैसा नेटालमें करना उचित है वैसा ही केप और डेलागोआ-बे आदि स्थानोंमें भी किया जाना चाहिए। इन सभी स्थानोंसे इंग्लैंडको तार जाने चाहिए। इस तरह लड़ते वक्त पैसेकी भी जरूरत होगी। उसकी व्यवस्था विधिपूर्वक की जानी चाहिए। प्रत्येक भारतीय अपना कर्तव्य पूरा करे और जैसे अपना काम करता है, वैसे ही समाजका काम करे, तो आश्चर्य न होगा यदि भारतीय राष्ट्रका जन्म दक्षिण आफ्रिकाकी राहसे हो जाये ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-२-१९०९