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१३५. पत्रः ए० एच० वेस्टको

प्रिटोरिया जेल
ट्रान्सवाल
मार्च ४, १९०९

प्रिय वेस्ट,

मैं अभीतक बायें हाथसे काम करता हूँ। दायाँ हाथ मुश्किलसे ही काममें ला सकता हूँ । अधिकारी मुझे श्रीमती गांधीको गुजरातीमें पत्र लिखनेकी अनुमति न देंगे। मुझे उनके लिए और हरिलालकी पत्नीके लिए खेद है। मैं नहीं जानता कि [ मेरी] पत्नी मेरा अंग्रेजीमें पत्र लिखना पसन्द करेंगी या नहीं। मैं जानता हूँ कि मैं कोई नई बात नहीं लिख सकता। वे मेरे हाथके लिखेको ही पढ़ना चाहती हैं। मुझे लगता है कि अनिच्छापूर्वक दिये गये अधिकारका लाभ न उठाना अधिक गौरवास्पद है। मुझे आप या मणिलाल अंग्रेजीमें लिख सकते हैं कि उनकी दैनिक प्रगति कैसी है। हरिलालकी पत्नीके सम्बन्धमें भी लिख सकते हैं। यदि अधिकारी चाहेंगे तो मुझे ये पत्र दे देंगे और मुझे रोगीके स्वास्थ्यके सम्बन्धमें कुछ मालूम हो जायेगा ।

कृपया श्रीमती गांधीसे कह दें कि मैं बिल्कुल अच्छा हूँ। वे जानती हैं कि मेरा सुखी होना बाहरी वातावरणको अपेक्षा मेरी मानसिक स्थितिपर अधिक निर्भर है। वे इस बातका खयाल रखें और मेरे सम्बन्धमें चिन्ता न करें। बच्चोंके हितके लिए वे अपनी तबीयत सुधारनेका प्रयत्न करें। वे पट्टियाँ नियमित रूपसे रखें और आवश्यक हो तो कटि-स्नान भी करें। मैं उन्हें जो खुराक देता था उसपर कायम रहें। उन्हें [ घूमना ][१] तबतक शुरू न करना चाहिए जबतक बिल्कुल अच्छी न हो जायें ।

हरिलालकी पत्नीको सब हिदायतें दे दी हैं। वह उनके मुताबिक चलती है, यह जानकर मुझे खुशी होगी। उसे सुबह सागूदाना और दूध लेना कभी न भूलना चाहिए। वह इनको अवश्य ले, उसका ध्यान मणिलाल रखे । रामीको अभी एक महीने और माँका दूध पीने दें। उसका स्तन-पान धीरे-धीरे ही छुड़ाया जा सकता है ।

मुझे बताया गया है कि यदि गुजरातीमें लिखी चिट्ठी मंजूर कर दी जाये तो भी वह मुझे दस दिनसे पहले न दी जा सकेगी।

सबको नमस्कार !

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

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