कृपया [मेरी] पत्नीके लिए मणिलालसे इसका अनुवाद करा दें।
मुझे भरोसा है, श्रीमती वेस्ट ठीक होंगी।
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें पेंसिलसे लिखे मूल अंग्रेजी पत्र (सी० डब्ल्यू० ४६७५) से।
सौजन्य : श्रीमती सुशीलाबेन गांधी
१३६. मसविदा : जेलके गवर्नरको लिखे प्रार्थनापत्रका
[ प्रिटोरिया
मार्च ११, १९०९ के बाद]
प्रार्थी एक ब्रिटिश भारतीय है, जो तीन महीनेकी कड़ी कैदकी सजा भोग रहा है । प्रार्थीको गत सप्ताह ब्यालूमें हर रोज भातके साथ एक औंस घी मिलता था। मालूम हुआ है कि यह गलतीसे दिया जाता था। प्रार्थी जेलमें इसी मासकी तीसरी तारीखको लाया गया था।
पिछले रविवारसे ब्यालूमें ऊपर लिखे अनुसार जो घी दिया जाता था, वह बन्द कर दिया गया है। प्रार्थीने रविवारको घीके बिना भात खानेका प्रयत्न किया; लेकिन खाना मुश्किल हो गया ।
पिछले सोमवारसे प्रार्थीको जो भात मिलता है उसे वह लाचारीसे वापस कर देता है; इसलिए तबसे उसने ब्यालू बिल्कुल नहीं किया है। प्रार्थीने मुख्य वार्डरसे घी न मिलनेकी शिकायत की थी। उसने प्रार्थीको नियम बताये और सुझाव दिया कि प्रार्थी चाहे तो चिकित्सा अधिकारीसे मिल सकता है।
इसी मासकी ११ तारीखको प्रार्थी चिकित्सा अधिकारीसे मिला। वह खास रियायतके तौरपर ब्यालूमें रोटी देनेका हुक्म जारी करनेको तैयार था ।
प्रार्थी इस रियायतकी कद्र करता है। परन्तु वह इसका लाभ नहीं उठा सका; क्योंकि वह ऐसे भोजनकी कोई सुविधा लेना नहीं चाहता जो उसकी ही स्थितिके अन्य भारतीय साथी-कैदियोंको न मिलता हो ।
प्रार्थीको छपी हुई भोजन-तालिका दिखाई गई थी, जिसमें भारतीय कैदियोंके लिए व्यालूके रूपमें भातके साथ एक औंस चर्बी देनेकी व्यवस्था है। तालिकामें भारतीयोंको भोजनमें प्रति सप्ताह दो बार मांस देनेकी भी व्यवस्था है।
प्रार्थीको सूचना दी गई है कि यह तालिका बदल दी गई है और अब भारतीय कैदियोंको ब्यालूमें बिना चर्बीके एक [औंस ] भात दिया जाता है और मांसकी बारीपर दोपहरके भोजनमें मांसके बजाय एक औंस घीके साथ भात दिया जाता है।
प्रार्थीके लिए, और अधिकतर भारतीयोंके लिए, धार्मिक दृष्टिसे मांस या, भेड़-बकरीकी चर्बी या ऐसी ही अन्य चर्बी खाना वर्जित है। भारतीय मुसलमान बिना जव्ह किये हुए
- ↑ यह मसविदा उस समय तैयार किया गया था जब गांधीनी प्रिटोरिया जेलमें थे ।