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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बँटाती हैं ? कृपया डॉ० नानजीको[१] फीनिक्सवासियोंका ध्यान रखनेके लिए धन्यवाद दें। वे मुझपर अपना ॠण सदा बढ़ाते ही रहते हैं। पाठशालाके भवनकी प्रगति कैसी है ? मेरा खयाल है कि छगनलाल मेरी ओरसे श्री गोरासे कहे कि वे छात्रोंके बोडिंगका खर्च बढ़ाना मंजूर कर लें, जिससे छोटी-मोटी रकमों के सम्बन्धमें संरक्षक सदाकी चिन्तासे मुक्त हो जायें। मुझे प्रसन्नता है कि स्वामीजी अधिक ठहर रहे हैं। आशा है कि [उनसे ] मिलकर यज्ञोपवीतके सम्बन्ध में विशेष जान सकूँगा। मैंने गाड़ीसे पीटरमैरित्सबर्गके पतेपर उन्हें जो पत्र[२] भेजा था वह उनको मिल गया होगा। मेरी यह तीव्र इच्छा है कि वे हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच सद्भाव बढ़ाने के लिए उनसे जो-कुछ हो सके सब करें। मैं आनन्दलालसे यह अपेक्षा करता हूँ कि वह अपना अध्ययन बन्द न करने और बागको हरा-भरा बनानेका वचन पूरा करेगा । कृपया वेस्टसे कहें कि वे रविवासरीय प्रार्थनाको, यदि उसमें कोई कठिनाई हो तो भी, जारी रखें। श्रीमती वेस्टकी बीमारीमें वह कहीं और की जा सकती है, किन्तु जहाँ तक सम्भव हो, बन्द न की जाये । कृपया [ इस पत्रके] फीनिक्स सम्बन्धी भागकी नकल करवाकर वेस्टको भिजवा दें। तब इसे सब पढ़ सकेंगे। और छगनलाल मुझे एक ब्योरेवार उत्तर लिखे जिसमें जो भेजना चाहें, उन सभीके सन्देश हों। मैं ७ मई तक छगनलालका पत्र मिलनेकी आशा करूंगा। इससे उसको काफी वक्त मिल जायेगा ।[३]

टाइप की हुई अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४९२५) से ।

१४१. भाषण : प्रिटोरियाकी सभा में

[४]

[प्रिटोरिया
मई २४, १९०९]

लम्बा भाषण देनेके लिए समय नहीं है। मैं नाश्ता करने चला गया था, जिसमें कुछ समय निकल गया । फिर भी दो शब्द कहता हूँ । इनपर आप ध्यान दें। अपने जेलके अनुभवके आधारपर मैं कह सकता हूँ कि जेल-जीवनकी हालत जैसी होनी चाहिए वैसी ही है। हम जो माँग रहे हैं वह हमें अवश्य मिलेगा। छूटनेपर छूटनेपर मैं देखता हूँ कि जो शूर हैं वे शूर ही रहेंगे। अध्यक्षने कहा है कि आपसी फूटके कारण संघर्ष लम्बा खिंच रहा है, लेकिन मेरी समझसे बात ऐसी नहीं है। हमारे भाई डरते हैं, इसी कारण जेलें भरती नहीं हैं। जो निडर हैं वे जेल जा रहे हैं और जायेंगे। और होना भी यही चाहिए। जान पड़ता है कि जेलमें कुछ कष्ट होनेपर भी छूटनेके बाद वे फिर जेल जानेके लिए तैयार

  1. डर्बनके एक चिकित्सक तथा नेटालके भारतीय समाजके नेता; फीनिक्स बस्तीमें बीमार पड़नेवालोंकी चिकित्सा अक्सर ये ही करते थे, और श्रीमती गांधीका इलाज भी इन्होंने ही किया था।
  2. यह उपलब्ध नहीं है ।
  3. पत्र अधूरा जान पड़ता है और यह शायद वह अंश है जो वेस्टको भेजा गया था।
  4. सजाकी समाप्तिपर २४ मई १९०९ को गांधीजी नियत समयसे डेढ़ घंटे पहले, सुबह साढ़े सात बजे ही छोड़ दिये गये थे, ताकि भारतीय किसी प्रकारका प्रदर्शन न कर सकें। फिर भी कोई सौ भारतीय उनका स्वागत करनेके लिए एकत्र हो गये थे । गांधीजी उनके साथ इस्लामिया मसजिद गये और बाद में उन्होंने वहीं यह भाषण दिया । सभाकी अध्यक्षता वली मुहम्मदने की।