पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/२५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१४४. भाषण : जोहानिसबर्गको सभामें

[१]

[ जोहानिसबर्ग
मई २४, १९०९]

आज कई महीने बाद आपको देखने और आपसे मिलनेका अवसर आया है। इससे मुझे खुशी होती है। परन्तु जेलसे रिहा होनेमें मैं प्रसन्न नहीं हूँ, क्योंकि हमारे नेता - और वे भी वयोवृद्ध -- जेलमें हैं। अभी उन्हें अपनी सजा पूरी करनेमें दो महीनेसे ज्यादा लगेंगे। जैसा आप जानते हैं, इनमें श्री दाउद सेठ, श्री पारसी रुस्तमजी और श्री सोराबजी आदि हैं। और यदि स्वार्थी बनकर कहूँ तो मेरा लड़का हरिलाल भी उनमें है । तब मुझे सुखसे बैठना- खाना कैसे अच्छा लगे ? जबतक हमें वह चीज नहीं मिलती, जिसे हम माँगते हैं, तबतक हम प्रसन्न नहीं हो सकते। हम जो कुछ मांगते हैं, खुदा हमें देगा। लेकिन वह सरकारकी मार्फत मिलेगा। हमें वह क्यों नहीं मिलता, इसका कारण हमें श्री काछलिया बता चुके हैं। कहा जाता है कि जो काम एक हजार लोग कर सकते हैं वह दससे नहीं हो सकता । लड़ाई इसलिए लम्बी खिंच रही है कि उसमें काफी लोग हिस्सा नहीं लेते। हम इस समय खुदाके घरमें हैं, जहाँ हमने शपथ ली थी, हाथ उठाया था और यह ऐलान किया था कि जबतक कानून रद नहीं किया जायेगा और शिक्षितोंका अधिकार न दिया जायेगा तबतक हम लड़ते रहेंगे, और प्रमाणपत्रका[२] [पंजीयन] उपयोग न करेंगे। हमें इस प्रतिज्ञाका पालन करनेके लिए जेलमें जाकर रहना चाहिए। मेरी तो इच्छा है कि जल्दी ही नेटाल जाऊँ और वहाँसे वापस आकर गिरफ्तार होऊँ । ऐसा करूँ तो दाउद सेठ और हरिलाल आदिसे मिल सकता हूँ। मेरा कर्तव्य तो समाजकी और समाजके हितचिन्तकोंकी सेवा करना ही है । में दाउद सेठके साथ जेल जाऊँ तो माना जायेगा कि मैं ठीक सेवा करता हूँ। आज यह नारा लगाया गया कि “हिन्दुओं और मुसलमानोंके राजाको सलामी दो।" यह उचित नहीं था । मैं समाजका सेवक हूँ, राजा नहीं हूँ। मैं खुदा यानी ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह मुझे सदा समाजकी सेवा करनेकी शक्ति और बुद्धि दे।[३] मेरी मुराद तभी पूरी होगी जब समाजकी सेवा करते-करते ही मेरी मृत्यु हो । मेरा कर्तव्य यही है। जिसके मनमें भारत और भारतीयोंका खयाल हो उसे समाजका सेवक ही बनना चाहिए। मैं बग्घीके सम्मानके लायक नहीं था, और न हूँ। जितनी सेवा करनी थी उतनी सेवा मुझसे नहीं हो सकी है, क्योंकि दूसरे लोग सेवक बनकर अब भी जेलमें हैं। वे छूट जानेपर भी बार-बार

  1. प्रिटोरियासे पार्क स्टेशन पहुँचनेपर गांधीजीका वीरोचित स्वागत किया गया । लगभग एक हजार भारतीय, चीनी और यूरोपीय उनकी और उनके साथियोंकी अगवानी करने स्टेशन आये थे उनमें रेवरेंड जे० जे० डोक भी थे । गांधीजोको मालाएँ पहनाई गई और गाड़ीमें बैठाकर मसजिदके प्रागणमें ले जाया गया। वहीं अहमद मुहम्मद काछलियाकी अध्यक्षतामें एक सभा हुई, जिसमें गांधीजी पहले गुजराती और बादमें अंग्रेजी में बोळे । देखिए अगला शीर्षक ।
  2. रजिस्टेशन सर्टिफिकेट |
  3. रिपोर्टसे पता चलता है कि यह वाक्य बोलते-बोलते गांधीजी विह्वल ही उठे ।