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१४५. भाषण : जोहानिसबर्गकी सभामें

[ जोहानिसबर्ग
मई २४, १९०९]

उन्होंने [गांधीजीने] कहा कि मुझे जेलसे बाहर आनेमें जरा भी खुशी नहीं है। इसका कारण स्पष्ट है। भारतीय समाजके कुछ अच्छेसे-अच्छे लोग अब भी ट्रान्सवालको विभिन्न जेलोंमें हैं। उनमें से कुछ तो वृद्ध हैं। मेरा सबसे बड़ा लड़का भी अभी जेलमें है। कुछ लोगोंको तो अभी दोसे ढाई मास तक की सजा और काटनी है। उनमें से कुछने मेरे साथ मित्रोंके नाते काम किया है और कुछ मेरे प्रति प्रेम और सम्मानका भाव रखनेके कारण ही जेल गये हैं। जबकि इन सभोकी आजादीपर प्रतिबन्ध लगा हुआ है, मनुष्य होते हुए क्या मुझे अपनी रिहाईपर किसी तरहकी प्रसन्नता हो सकती है ? इस प्रकारको परि- स्थितियोंमें में सुखी नहीं हो सकता। जबतक हमारे प्रति न्याय नहीं किया जाता, जो कि हमारा हक है, तबतक हम न खा सकते हैं और न आराम कर सकते हैं। हमारे प्रति वह न्याय कब होगा, यह भगवान ही जानता है, किन्तु इतना तो हम जानते हैं कि वह होगा अवश्य । पिछले तीन स्मरणीय मासोंमें मैंने स्थितिपर बार-बार विचार किया है और गत ढाई वर्षोंपर नजर दौड़ानेके बाद में अब भी कह सकता हूँ कि मैंने अपने देशभाइयोंको जो सलाह दी थी उसमें से में कुछ भी वापस नहीं लेता। (हर्ष ध्वनि ।) मैंने १९०७ के कानून- की जो निन्दा की है उसका एक शब्द भी में वापस नहीं ले सकता और मैं अब भी अपने इस वक्तव्यपर दृढ़ हूँ कि जनरल स्मट्स उक्त कानूनको रद करने के लिए वचनबद्ध हैं। हम पूर्ण और शुद्ध न्याय चाहते हैं। सम्पूर्ण भारतीय राष्ट्रका जो अपमान किया गया है, उसके सामने कोई भी भारतीय चुप नहीं बैठ सकता। जबतक वर्तमान स्थिति कायम है तबतक ट्रान्सवालमें सुरक्षित स्थान केवल जेल है। मैं जेलमें अपने साथ किये गये व्यवहार या संघर्षके बारेमें अधिक कुछ नहीं कहना चाहता । संघर्ष के बारेमें अधिक कुछ न कहनेका कारण यह है कि हालमें क्या होता रहा है, मैं नहीं जानता। मैं जिन जेल-अधिकारियोंकी सोधो देख-रेखमें था उनके विरुद्ध मुझे कुछ भी नहीं कहना है । मेरे हलकेके सन्तरी मेरे साथ हर तरहसे शिष्टता और सौजन्यका व्यवहार करते थे। यही बात दूसरे अधिकारियों के बारेमें भी है। मैं शीघ्र ही बहुत-कुछ और लिखूंगा, जो मुझे अपने देशभाइयोंसे कहना है। उन्हें बहुत-सा काम करना है और उन्हें अपने कर्तव्यका बोध होना चाहिए। मैं उन्हें बग्घीमें सड़कोंपर घुमाये जाने की अपेक्षा अपने लक्ष्यके लिए काम करते देखना अधिक पसन्द करता हूँ। मैंने पिछले तीन महीनोंमें 'बाइबिल 'में सन्त डॅनियलसे सम्बन्धित अंश पढ़कर बहुत सान्त्वना पाई है। अबतक जितने भी सत्याग्रही हुए हैं, उनमें डैनियल महानतम थे और हमें उनका अनुसरण करना चाहिए। यदि जनरल बोथा और स्मट्सके कानून हमारी अन्तरात्माके विरुद्ध हैं तो वे हमारे लिए नहीं हैं। हमें निःशंक-भावसे रहना चाहिए और